सत्यगाथा


छप्पन इंची छाती को ,  देना  होगा मोल 

द्वेष देश की फिजा में ,रहे यहा जो घोल

रहे  यहा  जो  घोल , बोलते बागी बोली 

चले  दनादन  कुत्तों पर , सेना की गोली 

कह बृजेश कविराय उठाया है जो बीड़ा 

करके  नमो इलाज , हरो घाटी की पीड़ा 

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