एक तो कोरोना से बेरोजगार ,,ऊपर से महंगाई की मार

कोरोना काल मे बढ़ती बेरोजगारी ने जहाँ परिवार के लिये समस्या खड़ी कर दी है वहीं सब्जी,दाल आदि की आसमान छूती कीमतों ने सामान्य लोगों को भूखा रहने को मजबूर कर दिया है। आमदनी की समस्या में गैस ईंधन, विद्युत बिल, दुकान का किराया, मकान का किराया , बच्चों की फीस, मोबाइल से पढ़ाई करने का इंटरनेट का बिल , मेडिकल खर्च,शादी विवाह या अन्य निमंत्रण के खर्च को सामान्य व्यक्ति कैसे झेलेगा ?  इस तरफ  सरकार व सामाजिक चिंतक आदि किसी का ध्यान नहीं है जबकि इस समय यह एक गम्भीर समस्या के रूप में समाज के सामने खड़ा है। अगर ऐसी स्थिति  थोड़ा और लंबे समय तक रही तो सामान्य जनजीवन में त्राहि त्राहि मच जाएगी। 


शिक्षा व्यवस्थता तो कोरोना काल में समस्याग्रस्त है ही सुरक्षा व्यवस्था भी ध्वस्त है। पुलिस प्रशासन पहले किसी समस्या को अनदेखा करती है किंतु जब कोई बड़ी वारदात हो जाती है तब हाथ पैर पटकना शुरू करती है। विकास के कार्यों के लिये जो कुछ सामान्य व्यक्ति तक आता भी है उसका एक हिस्सा तो बीच में इस तरह गायब हो जाता है कि उसकी कोई सूचना माँगने पर भी लोगों को उपलब्ध नहीं होती। 

वास्तव में इसे जनता की कमी भी कह सकते हैं क्योंकि अक्सर सम्पन्न लोग यह सोचकर विरोध नहीं करते कि इस समस्या का विरोध करने में मेरा क्या लाभ है किन्तु वही लोग जब जनसेवा के लिये चुनाव में उतरते हैं तब जनता से हाथ जोड़कर वादा करते हैं कि हम आपकी पूरी ईमानदारी से आप सबकी सेवा करेंगे ।वो अलग बात है कि इसी ईमानदारी की आड़ में वो अपना विकास करने लगते हैं। इस समस्या पर न तो शासन करने वाला दल ध्यान न दे किन्तु विपक्ष भी मौन रहते हैं तो ऐसा आभास होता है जैसे बारी बारी से लूटने का धंधा बना हो। हमारे देश मे ईमानदारी की शपथ तो सभी लेते हैं किंतु ईमानदारी से सेवा कुछ विभाग या कुछ व्यक्ति ही करते हैं। अन्य विकसित देशों से तुलना करने से हम विकसित नहीं हो जाएंगे। हमे अपने गिरेबान में झांकने की जरूरत है कि किन कारणों से हम पीछे हैं। कोई एक ईमानदार व्यक्ति अकेले न तो देश का विकास कर सकता है न तो स्वस्थ सामाजिक वातावरण विकसित कर सकता है। वर्तमान में उत्पन्न समस्या बिना सबके सहयोग के समाप्त होने वाली नहीं है किन्तु दुःखद है कि इसमें भी चंद लोगों को मानवता से परे दलाली की कमाई का अवसर प्राप्त हुआ है जिसे वो भुना भी रहे हैं औऱ सामान्य जनता की नजर में सरकार को दोषी बता रहे हैं। 

सरकार द्वारा किये जा रहे विकास कार्यो को नकारा नहीं जा सकता किंतु शत प्रतिशत शुद्ध कार्य धरातल न आ पाने में हमारे सिस्टम के दोष ही कारण हैं। मँहगाई का आलम ये है कि आलू और सेब के दाम में कोई विशेष अंतर नहीं रह गया है। 

सरकार को कोरोना काल मे इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिये कि रोजमर्रा की  खानपान की जरूरी वस्तुएँ सस्ते से सस्ते में लोगों को सुलभ हो सके तो ही “जान है तो जहान है” का मंत्र सफल हो सकेगा।

रिपोर्टर

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