पंचायत चुनाव के घमासान वैचारिक युद्ध में सामाजिक चिंतन अनिवार्य

पंचायत चुनाव का बिगुल बजते ही प्रत्याशियों की दौड़ तेज हो गई है। इस समय जनता की पौ बारह है । हर प्रकार से उनकी सेवा को सेवक हाथ जोड़े खड़े हैं। जिनके पास कभी भी समाज के लिए किसी प्रकार का समय नहीं रहा वह भी आज प्रत्याशी बनने के बाद इतना समय समाज में खर्च कर रहे हैं, इतने बड़े बड़े वादे कर रहे हैं कि जनता यह समझ नहीं पा रही है कि आखिर इतने बड़े बड़े जन सेवकों में से किसे अपना प्रमुख सेवक बनाया जाए ?


झुकने का आलम यह है कि इस समय आप उन्हें कुछ भी बोल दें तो आपकी बात का कोई प्रतिउत्तर नहीं मिलने वाला है, बल्कि बिना गलती के भी क्षमा माँगने को तैयार नजर आ रहे हैं। 


विचारणीय बात यह है कि आखिर इतने जनसेवक उस समय कहां रहते हैं जब भ्रष्टाचार के द्वारा लाखों करोड़ों रुपए का गमन होता है ?  यह लोग  उसे कोई मुद्दा भी नहीं बनाते हैं बल्कि सम्बन्ध जोड़कर वोट लेकर येन केन प्रकार से  चुनाव जीतना ही अपना प्रमुख लक्ष्य रखते हैं । 

 

कमोबेश प्रत्येक गाँव में ग्राम सभा की जमीनों पर रसूखदार लोगों के अवैध कब्जे हैंऔर कहीं कहीं उस जमीन के टुकड़े के लिये जंग भी जारी रहती है ।चरागाह की जमीन भी काफी लोग जोते पड़े हैं या अवैध कब्जे में लिये हैं लेकिन यह सब समाज में अब किसी के मुद्दे नहीं हैं। हर कोई विकास का नारा लगाकर अपना विकास करने की जुगत में लगा हुआ है। रास्ते तक जोतकर समाप्त कर दिये गए हैं लेकिन वोट बैंक के कारण कोई किसी को कुछ नहीं कहता। एक कहावत है कि  “ लोभी के गाँव में लबार भूखा नहीं रहता” । आज के राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में यह बात लगभग सटीक बैठती है।  आश्चर्यजनक बात तो यह है कि ऐसे लोग ही ज्यादातर प्रत्याशियों की लिस्ट में शामिल हैं जो कुछ अच्छे लोग बचे भी हैं उन्हें धनबल या बाहुबल से संम्पन्न न देखकर यह समाज उनका ही मजाक बनाकर अपने पैर में स्वयं कुल्हाड़ी मारता है। झुग्गी में रहने वाले गरीब को आवास नहीं मिला है क्योंकि उसके पास वोट कम है और धनहीनता के कारण उसके चाहने वाले कम हैं जिन्हें वह वोट में तब्दील कर किसी प्रत्याशी की मदद नहीं कर सकता। ऐसे गरीब को हजार -पाँच सौ रुपये  या दारू आदि वोट लेने के लिये देकर खुश कर दिया जाता है।उसका भी वही हाल है कि “मरता क्या न करता” । जहाँ कोई लाभ नहीं मिलना है इतना ही क्या कम है! 


आजकल के जनसेवकों के मुद्दे यह सब नहीं हैं । एक रटी रटाई पंक्ति बोलते हैं कि मैं गाँव/ क्षेत्र का विकास करूँगा। अब ये अलग बात है कि उन्हें विकास का कोई मॉडल खुद नहीं पता है। 


जब तक मतदाता छोटे छोटे स्वार्थ और लाभ से ऊपर उठकर योग्य सामाजिक शुभचिंतकों को स्थान नहीं देगा उसका विकास के बजाय शोषण होता रहेगा। मतदाता के पास यह एक ऐसा मौका होता है जब वह अपने साथ साथ अपने समाज का भला कर सकता है । अगर यहाँ चूक हुई तो उसके गम्भीर परिणाम होंगे जिसे आने वाली पीढ़ियाँ याद करेंगी। यह वतन आपका अपना है । अगर आप नुकसान के डर से अपने घर की चाभी किसी संदेहास्पद व्यक्ति को नहीं देते तो समाज की बागडोर देते समय इस बात पर विचार जरूर होना चाहिये  कि पात्र व्यक्ति का चयन ही उसके व उसके समाज के लिये कल्याणकारी है।

रिपोर्टर

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