कलेक्ट्रेट में बरसों से जमें लिपिकों के बड़े घोटाले तीन माह में भी नही हो पाई जांच

राजगढ़ ।। कलेक्ट्रेट में लिपिकों ने भूराजस्व अधिनियमों को ताक में रखकर जमकर घोटाले किए हैं। सैंकड़ो की तादात में हुए इन घोटालों में से महज एक घोटाले की आरटीआई एक्टिविस्ट ने संभागायुक्त से शिकायत की गयी है। जांच सत्यापित होने के बावजूद तीन माह बीतने पर भी कार्रवाई नही की गई है। कमिश्नर ने जिन शिकायतों को कलेक्टर को जांच करने के आदेश देकर अभिमत मांगा है उनमें भी बाबू ही जांच कर रहे है।  

नियम ताक पर 

मप्र भूराजस्व अधिनियम 1959 के अनुसार जिन नियमो के तहत राजस्व अमला काम करता है उन नियमो को राजगढ़ के लिपिकों ने ताक में रखकर काम किया है। आरटीआई एक्टिविस्ट माखन विजयवर्गीय ने बताया कि प्राप्त दस्तावेजो का अध्ययन करने पर एक ही नम्बर से दो दो प्रकरण के मामले की जानकारी उन्हें लगी थी उसके बाद प्रकरणों की नकल प्राप्त कर कमिश्नर को शिकायत की गई है। जिसमे ब्यावरा तहसील के प्रकरण 99 अ-6अ  दो बार दर्ज है। पहले प्रकरण में आदेश एवं पूरे प्रकरण की कॉपी उपलब्ध करवाई गई। जैसे ही दूसरी बार पुनः वही प्रकरण क्रमांक परन्तु गांव और किसान का नाम परिवर्तित कर जानकारी मांगी तो तहसीलदार ने लिखकर दिया कि इस तरह का कोई प्रकरण ही इस तहसील की दायरापंजी में दर्ज नही है।  जबकि हमारे पास उक्त फर्जी प्रकरण  के आदेश के हवाले से पटवारी ने विक्रय निषेध विलोपित कर रजिस्ट्री के बाद नामांतरण भी किया है  जानकारी अनुसार उक्त प्रकरण में भूमि विक्रय की अनुमति 1/1/2019 को कलेक्टर ने खारिज कर दी थी। लेकिन पनाली स्थित उक्त भूमि के विक्रय की अनुमति निरस्त करने के बावजूद  तत्कालीन पटवारी हरीबगस सिसोदिया ने उसी नम्बर का फर्जी आदेश बनाकर विक्रय निषेध हटा दिया एक माह बाद रजिस्ट्री एवं नामांतरण कर दिया। 

 सपना आया था अगले माह आवेदन आएगा

राजगढ़ तहसील के एक प्रकरण में आवेदन दसवें महीने में आया और प्रक्रिया पहले ही 9 वें महीने में ही पूर्ण कर ली गयी एवं आदेश भी हो गया। इसी 105 नम्बर के प्रकरण में महेश पिता आनंदीलाल द्वारा पट्टे की भूमि की खुद के नाम पर 2016 में विक्रय अनुमति ली गयी । जबकि खीमाखेड़ी स्थित उक्त भूमि के लिए 2011 में रजिस्ट्री के लिए स्टाम्प ड्यूटी चुका दी गयी।  स्टाम्प ड्यूटी चुकाने के दो वर्ष बाद 2013 में रजिस्ट्री भी हो गयी। तीन साल बाद 2016 में विक्रय अनुमति ली गयी जबकि उस समय भूस्वामी ही बदल गए थे। 

 दायरा पंजी में उक्त प्रकरण भी खीमाखेड़ी और करेड़ी के किसान के नाम से दो बार दर्ज है। आवेदक को शंका है कि उक्त दोनों प्रकरणों में भारी लेन देन कर फर्जी अनुमति जारी की गई। इन दोनों प्रकरणों में संलिप्त कलेक्ट्रेट के तत्कालीन बाबू सहित दोनों क्षेत्रों के पटवारियों की सांठ गांठ से सिविल सेवा आचरण संहिता का सरेआम उलंघन किया गया है। 

प्रथम दृष्टया ही दोषी पर नही हुई कार्रवाई एमपीएलआरसी के खुले उलंघन के दो मामलों के सत्यापित दस्तावेजो के साथ विजयवर्गीय ने कमिश्नर भोपाल को 18 अक्टूबर को शिकायत की थी। जहां से कलेक्टर राजगढ़ से पत्र क्रमांक 9619 शिकायत शाखा कलेक्ट्रेट राजगढ़ को दिनांक 27/10/21 को भेजा गया । पत्र में  जांच रिपोर्ट प्रतिवेदन सहित अभिमत मांगा है। समय सीमा में जवाब न देने पर दोबारा स्मरण पत्र 11 वें महीने में जारी कर 15 दिवस में जवाब मांगा था। परन्तु साल बदलने के बाद भी जवाब नही बन पाया है। प्रथम दृष्टया ही दोषी सिद्ध हो रहे लिपिको पटवारियों अथवा संबंधित तहसीलदार एसडीएम को निलंबित कर एफआईआर दर्ज कराना चाहिए परन्तु इस मामले में लिपिकों को बचाने की कोशिश की जा रही है।  

आरटीआई एक्टिविस्ट माखन विजयवर्गीय का कहना है की मुझे आरटीआई से प्राप्त दस्तावेजो में लगभग 50 से अधिक फर्जी एवं डबल नम्बर दर्ज प्रकरण प्राप्त हुए हैं। उनके अनुसार दस्तावेज प्राप्त कर दो प्रकरणों की शिकायत की थी। साढ़े तीन माह में भी कार्रवाई नही हुई। अब हम जल्द ही उच्च न्यायालय में उक्त सभी प्रकरण पेश करेंगे। 

रिपोर्टर

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