वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ संजीत कुमार ने खरीफ के फसलों की बुवाई के बारे में किसानों को दिया सलाह

वाराणसी ।। आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज, अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र अमिहित जौनपुर-II के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ संजीत कुमार ने  खरीफ फसलों धान, मक्का, ज्वार, बाजरा आदि फसलो की रोपाई/ बुवाई करने से पहले खेतों की गहरी जुताई करने की सलाह दी। उन्होने कहा कि वर्षा आधारित भूमि 

गर्मियों में गहरी जुताई करने से अधिक लाभ होता है।बरसात शुरु होने से पूर्व मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करना गर्मी में लाभप्रद होता है।

अगर गर्मी की जुताई कर दी जाती है तो वर्षा होने पर धरती की गीली सतह और भूगर्भ की गीली सतह का मेल जल्दी हो जाता है। ऐसा होने से खरीफ की बुआई के बाद यदि दूसरी बार वर्षा होने में देरी हो जाय तो भी भूमि के ऊपर की सतह जल्दी नहीं सूखती और न ही छोटे-छोटे अंकुरित पौधे ही मुरझा कर सूखते है।

बहुत से कीट जैसे टिड्डी, अपने अण्डे मिट्टी में कुछ सेमी भीतर रख देती है, जो वर्षा की पहली फुहार पर विकसित हो जाते हैं और बाहर निकलने लगते हैं। यदि गर्मियों में जुताई की जाय तो ये सब सतह पर आ जाते है और पक्षियों द्वारा नष्ट कर दिये जाते हैं या सूर्य के प्रकाश से स्वयं मर जाते है।

सस्य वैज्ञानिक डॉ संजय कुमार ने बताया कि बहुवर्षीय खरपतवारों की जड़ें जमीन में काफी अधिक गहराई तक फैली होती हैं और इन जड़ों में काफी अधिक मात्रा में भोज्य पदार्थ संचित होते है  और बहुवर्षीय खरपतवारों के भूमि के ऊपरी भाग को अगर नष्ट भी कर दिया जाये तो भूमि के अंदर स्थित जड़ द्वारा पुन: पौधा तैयार हो जाता है। गर्मी में अगर गहरी जुताई 2 से 3 बार की जाये तो कॉस जैसा जटिल खरपतवार नष्ट किया जा सकता है। अगर रेतीली भूमि में दूव की समस्या है तो गर्मियों में डिस्क हैरो से जुताई करके इस खरपतवार से मुक्ति पाई जा सकती है।

कृषि वानिकी वैज्ञानिक डॉ अनिल कुमार बताये कि जब गर्मी के मौसम में भूमि की गहरी जुताई की जाती है तो भूमि सतह खुलने से भूमि में वायु का संचार प्रचुर मात्रा में होता है। सूर्य का प्रकाश भूमि में पहुंचता है, फलस्वरुप इससे पौधे मिट्टी के खनिज पदार्थो को आसानी से भोजन के रुप में ग्रहण कर लेते हैं। साथ ही साथ धूप और वायु गर्मी की जुताई से भूमि को पर्याप्त मात्रा में मिलता रहता है। मृदा वैज्ञानिक डॉ दिनेश कुमार ने कहा कि ग्रीष्म कालीन जुताई से भूमि में नाइट्रोजन उपलब्धता बढ़ जाती है। भूमि में उपस्थित जैवीय पदार्थ जल्दी ही नाइट्रेट की शक्ल में बदल जाते हैं। जिससे इस खेत में बोयी जाने वाली फसल को लाभ पहुंचता है।

इंजी बरूण कुमार ने बताया कि गहरी जुताई करने से भूमि में जल प्रवेश और पारगम्यता क्षमता में सुधार होता है, जिससे मिट्टी की नमी संरक्षण क्षमता बढ़ जाती है। इसलिए पौधों की जड़ों को नमी आसानी से मिल सकती है। दो से तीन बार जुताई करने से मिट्टी बारी-बारी से सूखती और ठंडी होती जाती है। यह मिट्टी की संरचना में सुधार करने में मदद करता है। गर्मी की जुताई सतह के अपवाह यानी मिट्टी कटाव को रोकता है, नमी संरक्षण में सुधार करता है जिससे जल स्तर में वृद्धि होती है। जुताई करने से मिट्टी में वायु का समावेश होता है जो सूक्ष्मजीवों के विकास में मदद करता है। इस सूक्ष्मजीव के कार्बनिक पदार्थों के अपघटन के परिणामस्वरूप फसलों को भरपूर पोषक तत्व उपलब्ध होते हैं। प्रक्षेत्र प्रबंधक विजय कुमार सिंह ने कहा कि खेत में मौजूद कीट मिट्टी की जुताई के कारण सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आते हैं जिससे कीट नष्ट हो जाता है और इन्हें फैलने से भी रोका जा सकता है।

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