विश्व प्रसिद्ध भरतमिलाप के दौरान नाटीईमली का मैदान

वाराणसी । काशी में 5 म‍िनट की लीला को देखने जुटते हैं लाखों लोग, 475 साल पुरानी है परंपरावाराणसी: गोधूलि बेला में सूर्यास्त के पहले होने वाला विश्व विख्यात भरत मिलाप नाटी इमली मैदान में संपन्न हुआ। वाराणसी. काशी की रामलीला काफी मशहूर है। विजया दशमी के दूसरे दिन नाटी इमली इलाके में गोधूलि बेला में सूर्यास्त के पहले होने वाला विश्व विख्यात 'भरत मिलाप' का मंचन किया गया। बताया जाता है क‍ि यह 475 साल पुरानी परंपरा है। 5 मिनट के इस लीला को देखने के लिए देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे। खास बात ये है क‍ि लीला खत्म होने के बाद लोग घर न जाकर पहले कहीं व‍िश्राम करते हैं फ‍िर घर जाते हैं। इस लीला में काशी के राजा अनंत नारायण खुद भगवान की परिक्रमा करते हैं और सोने की गिन्नी देकर प्रसाद लेते हैं।

आगे पढ़‍िए क्यों होती 5 म‍िनट की लीला... 

चित्रकूट रामलीला समिति के महामंत्री ने मोहन कृष्ण अग्रवाल बताया, भरत ने संकलप लिया था, ''यदि आज मुझे  सूर्यास्त के पहले श्रीराम के दर्शन नहीं हुए तो प्राण त्याग दूंगा।'' इसीलिए यह लीला सूर्यास्त के पहले 4:40 पर होती है। इसके बाद यदुवंशी लोग अपने कंधों पर 'भगवन रथ' लेकर जाते हैं।-भगवान राम के 14 वर्षों का वनवास 14 दिनों के लीला में पूरा किया जाता है। लीला के पात्र (कलाकार) 10 से 13 साल के बीच के होते हैं।-उन्होंने बताया, संत तुलसीदास जी के जगत छोड़ने के बाद बाद उनके समकालीन संत मेधा भगत काफी विचलित हो उठे थे। सपने में उन्हें तुलसीदास के दर्शन हुए और उसके बाद उन्हीं के प्रेरणा से उन्होंने इस रामलीला की शुरुआत की, तभी से ये परंपरा चली आ रही है।  -काशी नरेश अनंत नारायण के सामने और लाखों लोगों के बीच 5 मिनट की अद्भुत लीला को दर्शाया गया। तुलसीदास ने रामचरित मानस को काशी के घाटों पर लिखा। उसके बाद उन्होंने कलाकारों को इकठ्ठा कर यहां लीला का शुभारंभ क‍िया। हालांक‍ि, इसे परंपरा के रूप में मेघा भगत ने ढाला। इसी चबूतरे पर भगवान राम ने मेधा भगत को दर्शन दिया था। अस्ताचलगामी सूर्य की किरणों में होती है लीला-4 बजकर 40 मिनट पर जैसे ही अस्ताचलगामी सूर्य की किरंणे भरत मिलाप मैदान के एक निश्चित स्थान पर पड़ती हैं तो भगवान राम और लक्ष्मण दौड़ कर भाइयों को गले लगाते हैं। लीला को देखने देश-विदेश से लोग आते हैं।

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