सपने (कविता)

 सुल्तानपुर

सपने (कविता)

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सपने •••

जो उम्मीदों में ढल 

पल -पल

हाँ 

हर एक पल में 

बस जाते हैं ।

सपने •••

जो इंतजार की हद तक 

साँसों का संवाहक बन 

साँसों को 

साँसों से 

बाँधे रखते हैं।

सपने •••

जो बदली सा उमड़ -घुमड़ 

गरज-बरस

भंग कर देते 

नीरवता जीवन की 

तुम कहते छोड़ दूँ 

उन सपनों को देखना? 

तुम कहते लौट आऊँ 

उस प्रस्थान विन्दु पर?

अरे 

कमल की पंखुड़ियों के मोती 

और आँख के आँसुओं में 

तुम्हे फर्क लगता होगा 

मुझे नहीं ।

तुमसे कितनी बार कहा 

जीवन में सुघड़ता 

तभी तक है 

जब तक 

सपनों का साथ है

तुमसे कितनी बार कहा 

बिना सपनों का जीवन 

मुर्दाघाट है 

बिना सपनों का जीवन 

मुर्दाघाट है ।

 

●अभिषेक उपाध्याय श्रीमंत

देवराजपुर,सुल्तानपुर, (उ. प्र.

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