साधना, तपस्या, भक्ति,योग, करने का उत्तम समय ही है युवा अवस्था

संवाददाता श्याम सुंदर पांडेय की रिपोर्ट 

दुर्गावती (कैमूर)-- साधना तपस्या भक्ति योग मनुष्य जीवन के भक्ति मार्ग के एक ही शब्द है जिसे अलग-अलग शब्दों से संबोधित किया जाता है।नर सामान नहीं कौनो देही जीव चराचर याचत येही क्योंकि साधन धाम मोक्ष कर द्वारा इसी शरीर में बना है कहीं अन्य नहीं इसलिए इस दुर्लभ शरीर को समझने की जरूरत है कब तक रहेंगे कब जाएंगे इसकी कोई सीमा निश्चित नहीं है।लाभ कि कछु हरिभगत समाना, जेहि गांवहीं श्रुति संत पुराना। हानि कि एही सम जग कछु नाहीं,भजिय न रामहिं नर तन  पाही।कई लोग कहते है कि अभी तो हम सांसारिक विषय वासनाओं का मजा ले लें, बुढ़ापे में भगवान का सुमिरन- भजन करेंगें । लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि पूरा जीवन जो अच्छे बुरे कर्म किये हैं , जैसा चिंतन किया है मरते समय भी वही याद आएगा ।

याद रखिये जैसे अधिक धागे मिल कर जब रस्सी बन जाते हैं तो उनको तोड़ना कठिन हो जाता है वैसे ही बुढ़ापे में जब संस्कार पुराने हो जाते हैं तो उन्हें बदलना कठिन हो जाता है।अंत समय हमे भगवान की याद आये जिससे हमारी सदगति हो ऐसा नहीं हो पता,इसके लिए जरूरी है बहुत काल का पहले से अभ्यास करना स्वाध्याय करना और साधन करना । जैसे कोई मनुष्य प्रतियोगी परीक्षा में पास होने के लिए पहले से ही तैयारी करता है और पास हो जाता है । यदि वह सोचे कि परीक्षा वाले दिन ही तैयारी कर लेगे तो वह पास नही हो सकेगा । वैसे ही अगर हम भी सोचें कि जब हमारा अंत समय आएगा तब ईश्वर को याद कर लेंगें तो हम कभी नही कर पाएंगे इसलिए हमे आलस्य निद्रा त्याग कर, जाग भजन में लाग। जीवन समय अमूल्य है, फिर ऐसा कहं पाग के फॉर्मूले को अपनाना होगा। क्योंकि कब श्वास बंद हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता,श्वांसा एक अमूल्य है, हीरा मूल्य न आय सो खोवो तुम शयन में, धोखे जन्म गवाय।इसलिए आलस्य को छोड़कर एवं निद़ा से जागकर भजन में लग जावें। यह जीवन समय अमूल्य है, फिर ऐसा भजन करने का उत्तम समय नहीं मिलेगा। इस हीरा रुपी श्वांसा का मूल्य नहीं है इसे सोकर नष्ट न करें। माया बिबिध रुपों में आपकी पीछा कर रही है। एक समस्या का समाधान हुआ नहीं, तबतक दूसरी समस्या आ खड़ी हो गई। यहां जीवन भर संघर्ष ही संघर्ष करते रहना है।प़भु भजन से माया दासी बन जाती है और सभी कार्य सुलभ हो जाते हैं।


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