
श्रमजीवी संघटना का निर्धार आंदोलन 12 वें दिन देर रात स्थगित
- महेंद्र कुमार (गुडडू), ब्यूरो चीफ भिवंडी
- Feb 15, 2025
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12 दिनों तक डटे रहे आदिवासी आंदोलनकारी
भिवंडी। "जब जनता एकजुट होती है, तो सरकारी तंत्र भी सक्रिय होकर काम करने लगता है और न्याय दिलाने की प्रक्रिया तेज होती है।" यही बात श्रमजीवी संघटना के आदिवासी कार्यकर्ताओं ने अपने आंदोलन के माध्यम से साबित कर दी है। यह विचार श्रमजीवी संघटना के संस्थापक एवं आदिवासी क्षेत्र आढावा समिति के अध्यक्ष विवेक पंडित ने व्यक्त किए। वह भिवंडी उपविभागीय अधिकारी कार्यालय के प्रांगण में वन अधिकार दावों को मंजूर करवाने के लिए श्रमजीवी संघटना द्वारा शुरू किए गए बेमियादी निर्धार आंदोलन के समापन अवसर पर बोल रहे थे।
भिवंडी और शहापुर तालुके के हजारों आदिवासी परिवारों के वन अधिकार दावे अब तक मंजूर नहीं किए गए थे। इस अन्याय के खिलाफ 3 फरवरी से श्रमजीवी संघटना के नेतृत्व में भिवंडी उपविभागीय अधिकारी कार्यालय के बाहर बेमियादी आंदोलन शुरू किया गया था। इस दौरान सैकड़ों आदिवासी पुरुष और महिलाएं वहीं डेरा डालकर बैठे रहे। शुक्रवार को 12वें दिन देर रात श्रमजीवी संघटना के संस्थापक विवेक पंडित ने आंदोलन स्थल पर पहुंचकर उपविभागीय अधिकारी अमित सानप, तहसीलदार, गट विकास अधिकारी और वन विभाग के अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक की। बैठक में बीते 12 दिनों में हुई प्रगति पर चर्चा की गई और प्रशासन ने बताया कि वन अधिकार दावों की मंजूरी की प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ रही है। शेष दस्तावेजी कार्य के लिए 3-4 दिन का समय लग सकता है, इसलिए आंदोलन को स्थगित करने का निर्णय लिया गया। इसके बाद आंदोलनकारियों ने जश्न मनाते हुए नाच-गाने के साथ अपनी खुशी जाहिर की।
आज के समय में जब आंदोलन मीडिया के ध्यान के लिए किए जाते हैं, वहीं श्रमजीवी संघटना के नेतृत्व में आदिवासी समाज ने शांतिपूर्ण और अहिंसक आंदोलन कर अपने न्याय और अधिकार की मांग को मजबूती से रखा। विवेक पंडित ने कहा कि यह आंदोलन समाज के लिए दिशा-निर्देशक साबित होगा।वन अधिकार कानून को लागू हुए 18 साल हो चुके हैं, लेकिन अब तक इसका सही से अमल नहीं किया गया था, जिसके खिलाफ यह आंदोलन शुरू किया गया। लेकिन भिवंडी उपविभागीय अधिकारी कार्यालय, तहसीलदार, पंचायत समिति और वन विभाग ने 2300 वन अधिकार दावों को जांच कर मंजूरी के लिए जिलाधिकारी कार्यालय भेजने का कार्य 12 दिनों के भीतर पूरा किया। यह इस आंदोलन की बड़ी जीत मानी जा रही है। अब ये दावे जिला स्तरीय वन अधिकार दावे समिति के माध्यम से मंजूर किए जाएंगे। विवेक पंडित ने यह भी कहा कि 2005 से पहले किए गए वन अधिकार दावों को मंजूर करना ही कानून का मुख्य उद्देश्य है, लेकिन यदि कोई इसका दुरुपयोग करता है, तो यह गलत है। उन्होंने प्रशासन से नए दावों की कठोर जांच करने का निर्देश दिया। साथ ही, उन्होंने सवाल उठाया कि वन विभाग की भूमि पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हुआ, लेकिन उस समय वन विभाग ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? उन्होंने आगे कहा कि आदिवासी समाज ही इस देश के असली मालिक हैं, इसलिए वनों के संरक्षण की जिम्मेदारी भी उन्हीं की है। वन अधिकार प्राप्त करने वाले आदिवासी परिवारों को खेती और फलोद्यान (ऑर्चर्ड) विकसित करने के लिए सरकार की 256 कृषि योजनाओं का लाभ उठाने और पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी निभाने की अपील की। इस आंदोलन को सफल बनाने में श्रमजीवी संघटना के सरचिटणीस बालाराम भोईर, जिल्हाध्यक्ष अशोक सापटे, प्रदेश उपाध्यक्ष दत्तात्रय कोलेकर के नेतृत्व में दशरथ भालके, राजेश चन्ने, सागर देसक, सुनील लोणे, प्रकाश खोडका, तानाजी लहांगे, महेंद्र निरगुडा और आशा भोईर समेत कई कार्यकर्ताओं ने विशेष मेहनत की।
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