जिसको वतन से प्यार नहीं उसका कोई ऐतबार नहीं

संवाददाता श्याम सुंदर पाण्डेय की रिपोर्ट 

दुर्गावती(कैमूर)-- धीरज धर्म मित्र अरु नारी, आपतकाल पारिखहूं चारी।

मानस कहता है,यहां तो उल्टा ही हो रहा है ।आपत्ति काल में धीरज धर्म युक्त परामर्श और धैर्य धारण करने की जगह शब्दों के बाण चल रहे हैं। संविधान बोलने की आजादी देता है लेकिन संविधान यह नहीं कहता कि आपत्ति के समय काल में बिरोधि देशों के स्वर से स्वर मिलाओ यदि विरोधियों के स्वर से स्वर मिलाते हो तो तुम देशभक्त कहा हो। देश के विषम परिस्थिति में यदि देश विरोधी बयान दिए जाते हैं तो दूसरे देशों का मनोबल बढ़ता है और शासन कर रहे लोगों की इच्छा शक्ति घट जाती है। अपने को सुर्खियों में आने के लिए दो कौड़ी के लोग जिन्हें अपने वतन से लगता है नफरत है वह सवाल करते हैं, बिहार में ही जाकर क्यों बोले तो तुम ही बता दो कहां बोलना चाहिए, पाकिस्तान में जाकर, तो पाकिस्तानियों को तुम्ही क्यों नहीं बता देते। आपत्ति काल को राजनीती से जोड़ने वाले लोगों को इतनी ही फिक्र है तो सीमा पर जाकर रक्षा करना चाहिए या पाकिस्तान में जाकर पाकिस्तान सरकार को  जवाब देना चाहिए। देश की जनता को अपना बयान सुनाकर भड़काने से और देश में नफरत फैलाने से क्या मिलने वाला है। यदि देश तुमको प्यारा नहीं लग रहा है तो अपने प्यारे देश में चले जाओ कौन रोकता है। खाना पीना सोना सांस लेना इस देश में और गुणगान करना दूसरे देश का यह कब तक चलेगा क्या यह राष्ट्र द्रोह की श्रेणी में नहीं आता क्या इस पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। देश में बहुत से मुद्दे है बहस करने के लिए तर्क करने के लिए क्या आतंकियों का हमला ही मिला है अहम मुद्दा।बंगाल का नरसंहार वक्त का समर्थन आरक्षण लागू करके जनता को बांटना ये सब मुद्दा दिखाई नहीं दे रहा है। है हिम्मत और दिमाग तो विकास का कोई मॉडल सरकार को दो समझाओ कि बेरोजगारों को रोजगार कैसे देना है या नौकरी देने के लिए कोई मॉडल हो तो सरकार को दो और नहीं सरकार मानती है तो उस पर गांव से लेकर सदन में बहस करो जनता को समझाओ। देश में यदि कही भी घटिया किस्म के काम होते हो तो समीक्षा के लिए मौका ही नहीं है कि जनता के सामने रखा जाय,लगता है अपने क्षेत्र में हो रहे काम को देखने के लिए मौका ही नहीं है केवल टिप्पणी और बयान देने के लिए मौका है। कुर्सी की राजनीति के लिए देश के साथ घात करके कब तक राजनीति की जा सकती है, क्या ऐसा करना उचित है, क्या यह गद्दारी की श्रेणी में नहीं आता। जो अपने वतन से प्यार नहीं कर सकते वह अपने वतन की जनता से क्या प्यार कर सकते हैं, जो अपने शत्रु ओ के सुर में सुर मिलाते हैं वह क्या जनता के हितैषी हो सकते हैं,कभी नहीं, उन्हें तो देश में रह कर राजनीति करने की बात तो दूर देश में रहने का भी अधिकार नहीं है और वैसे लोगों पर कानून के हिसाब से करवाई होनी ही चाहिए।

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