मजदूर दिवस पर मजदूरों के प्रति बिहार के राजनेताओं को एक संकल्प लेने की है जरूरत

 संवाददाता श्याम सुंदर पांडेय की रिपोर्ट

दुर्गावती(कैमूर)-- दूसरों का महल और फैक्ट्री तो बना डाले लेकिन अपना महल नहीं बना पाए श्रमिक। यदि प्रधानमंत्री आवास योजना नहीं होता तो एक भी श्रमिकों के घर श्रमिकों के मजदूरी से नहीं बन पाते।विकास के रास्ते की एक अहम कड़ी है श्रमिक जिसका न अपना घर है न कोई ठिकाना, घर परिवार से दूर रहकर अपना पेट पालने के लिए बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां बड़ी बड़ी महल और अट्टालिकाएं बना डाला श्रमिक लेकिन बदले में जितना प्राश्रमिकी मजदूरी मिलनी चाहिए थी उतना नहीं दिला पाया भारतीय संविधान ने। बिहार की राजनीति में बिहार के श्रमिकों के लिए कोई योजना ही नहीं बनाई गई जिसके कारण दुनिया का सबसे ज्यादा मजदूर होने का रिकॉर्ड इसी के नाम से दर्ज हुआ। बिहार के राजनेता अपनी विरासत के साथ-साथ अपने सियासत को खड़ा करने का खाका तैयार कर लिया लेकिन मजदूरों का प्रदेश होने का धब्बा अपने माथे से नहीं मिटा पाया। कलाकारी और योग्यता से भरपूर बिहार का मजदूर भारत में ही नहीं अन्य देशों में भी अपने हुनर के बल का लोहा मनवाया। लेकिन 77 वर्षों की आजादी के बाद भी बिहार के राजनीतिक हिस्सा का दंश झेलते हुए बिहार का मजदूर अन्य राज्यों की तरफ रुख करने के लिए मजबूर होता रहा और आज भी है। मजदूर दिवस पर राजनेताओं को एक संकल्प लेने की जरूरत है ताकि बिहार के मजदूर को ऐसा संसाधन दिया जाए ताकि के किसी अन्य राज्य की तरफ न जा सके।

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