अपनी मांगों को लेकर जिला मुख्यालय पर आदिवासियों का अनिश्चितकालीन धरना जारी,सरकार पर लगा रहे संवैधानिक अधिकार छीनने का आरोप
- कुमार चन्द्र भुषण तिवारी, उप संपादक बिहार
- Sep 10, 2025
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वही सूत्रों की माने तो चुनाव का समय नजदीक देख राजनीतिक पार्टियों द्वारा इनकी मत प्राप्त करने के लिए इन्हें किया जा रहा भ्रमित
जिला संवाददाता संदीप कुमार की रिपोर्ट
कैमूर -- जिले में आदिवासी समुदाय ने अपने संवैधानिक अधिकारों की बहाली के लिए एक विशाल और अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन का आग़ाज़ किया। जिला मुख्यालय पर आयोजित इस धरना प्रदर्शन में हजारों की संख्या में आदिवासी महिलाएँ, पुरुष, युवा और छात्र एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। यह प्रदर्शन बिहार और भारत सरकार द्वारा कथित तौर पर छीने गए आदिवासी अधिकारों के खिलाफ एक शांतिपूर्ण, लेकिन दृढ़ संकल्पित आंदोलन है। धरना प्रदर्शन के आयोजकों ने सभा को संबोधित करते हुए यह आरोप लगाया कि सरकार द्वारा असंवैधानिक ढंग से आदिवासियों के अधिकारों का हनन किया जा रहा है। उन्होंने कैमूर की पहाड़ियों पर बसे सभी जनजाति समाज से हजारों की संख्या में जिला मुख्यालय पहुँचकर इस विशाल सम्मेलन को सफल बनाने का आह्वान किया था, और उनकी अपील का व्यापक असर देखने को मिला-
जिलेभर से आदिवासियों का जनसैलाब अपने हकों की लड़ाई के लिए उमड़ पड़ा है। आयोजकों ने इस बात पर जोर दिया कि आदिवासी समुदाय अपने पारंपरिक भूमि अधिकारों, जल, जंगल और जीवन से जुड़े अधिकारों को बचाने के लिए प्रतिबद्ध है, जिन पर लगातार खतरा मंडरा रहा है। इस अनिश्चितकालीन महासम्मेलन में कई महत्वपूर्ण मांगें उठाई जा रही हैं, जिनमें शिक्षा का अधिकार और अपनी सांस्कृतिक पहचान से जुड़े मुद्दे प्रमुख हैं। आदिवासी समुदाय का कहना है कि उन्हें शिक्षा के पर्याप्त अवसर नहीं मिल रहे हैं, जिससे उनकी युवा पीढ़ी विकास की दौड़ में पिछड़ रही है। इसके साथ ही, उनकी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान और परंपराओं को लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है, जिससे समुदाय में गहरा असंतोष है। एक आदिवासी नेता ने कहा, "हम अपनी संस्कृति और भाषा को संरक्षित करना चाहते हैं। सरकार को हमारी पहचान को मान्यता देनी चाहिए और उसके संरक्षण के लिए कदम उठाने चाहिए।" इस धरना प्रदर्शन से आदिवासियों को उम्मीद है कि सरकार उनकी मांगों पर गंभीरता से ध्यान देगी और उनके संवैधानिक अधिकारों को बहाल करेगी। प्रदर्शनकारियों ने स्पष्ट किया है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, तब तक यह अनिश्चितकालीन आंदोलन जारी रहेगा।
क्या कहते हैं सूत्र
वही सूत्रों की माने तो बिहार विधानसभा चुनाव को नजदीक देखते हुए आदिवासी समाज की मत प्राप्त करने के लिए राजनीतिक पार्टियों द्वारा इन्हें भ्रमित किया जा रहा है और हमेशा किया जाता हैं। सरकार द्वारा जल व जंगल की संरक्षण हेतु अनेकों योजनाएं चलाई जा रही है। वही जब इनकी परंपरागत जीवनशैली को देखा जाए तो आधुनिकता की खोज में ये चंद पैसों की लोभ में ईसाईयत को अपना कर अपनी परंपरा को खुद ही खो रहे हैं ।


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