अंदरूनी राजनीति या भेदभाव ? कल्याण पूर्व में शिवसेना के भीतर उबल रहा असंतोष

शिवसेना में हिंदी भाषी नेतृत्व को ‘सीमित’ करने की चर्चा गर्म

कल्याण । कल्याण पूर्व में शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) के भीतर उत्तर भारतीय कार्यकर्ताओं की भूमिका सीमित किए जाने को लेकर उठे सवालों ने स्थानीय राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। लगातार बढ़ती सक्रियता और लंबे समय से किए जा रहे योगदान के बावजूद हिंदीभाषी कार्यकर्ताओं को संगठनात्मक नेतृत्व और प्रभावी पदों से दूर रखा जा रहा है, ऐसी चर्चाएँ राजनीतिक गलियारों में तीव्र हो गई हैं। आरोप यह है कि चुनावी समय में हिंदीभाषी समाज से निकटता बढ़ाने का दिखावा किया जाता है, पर जब नेतृत्व की वास्तविक परख का अवसर आता है, तब इन्हीं कार्यकर्ताओं को किनारे करने के प्रयास शुरू हो जाते हैं। इसी विवाद के केंद्र में इस समय उत्तर भारतीय विभाग, शिवसेना कल्याण शहर के प्रमुख सी.पी. मिश्रा का नाम प्रमुखता से सामने आ रहा है।

सी.पी. मिश्रा की दावेदारी पर दबाव ! 

जानकारों के अनुसार मिश्रा पिछले पंद्रह वर्षों से एकनाथ शिंदे के विश्वसनीय, सक्रीय और समर्पित कार्यकर्ताओं में गिने जाते हैं। पार्टी के कठिन समय से लेकर सत्ता तक के सफर में उन्होंने हमेशा अग्रिम पंक्ति में रहकर काम किया है। शिंदे गुट के गठन के समय भी वे सबसे पहले खुलकर समर्थन देने वालों में शामिल थे। समाज में शिवसेना की पकड़ मजबूत करने और संगठन को निरंतर समय देने के बावजूद जब वे इस बार टिकट की दावेदारी कर रहे हैं, तब उनके साथ उपेक्षापूर्ण व्यवहार किए जाने की चर्चा तेज़ है। पार्टी से जुड़े लोगों के मुताबिक कुछ स्थानिक नेता अपने करीबी कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाने के नाम पर मिश्रा की दावेदारी कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। यह स्थिति केवल एक नेता की उपेक्षा नहीं मानी जा रही, बल्कि पूरे उत्तर भारतीय समाज में बढ़ते असंतोष का संकेत बताई जा रही है। हिंदीभाषी समाज का आरोप है कि शिवसेना में उत्तर भारतीय कार्यकर्ताओं को आज भी पूर्ण स्वीकृति प्राप्त नहीं है। उनकी जनसंख्या और वोट बैंक का लाभ तो चुनावों में लिया जाता है, लेकिन वास्तविक नेतृत्व, टिकट, या संगठन के प्रभावशाली पदों की बात आते ही दूरी बना ली जाती है। उत्तर भारतीय समाज से जुड़े कुछ लोगों का कहना है कि जब मिश्रा जैसे वरिष्ठ और विश्वसनीय कार्यकर्ता, जिनकी प्रत्यक्ष पहुंच एकनाथ शिंदे और डॉ. श्रीकांत शिंदे तक है, यदि उन्हें भी हाशिये पर रखा जा रहा है, तो साधारण कार्यकर्ताओं का विश्वास डगमगाना स्वाभाविक है।

स्थानीय राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार शिवसेना की इस आंतरिक खींचतान का सीधा लाभ भाजपा उठा रही है, जिसकी पकड़ उत्तर भारतीय समाज में पहले से मजबूत है। यदि शिवसेना में ऐसे विवाद जारी रहे, तो आने वाले चुनावों में इसका असर स्पष्ट दिख सकता है। कल्याण क्षेत्र में पहले से ही कुछ नाराज शिवसैनिकों के भाजपा में शामिल होने की जानकारी सामने आई है, जिससे यह संकेत मिलता है कि असंतोष अब केवल चर्चा नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर राजनीतिक बदलाव का रूप लेने लगा है। एकनाथ शिंदे की छवि उत्तर भारतीय समाज में मजबूत और सम्मानित मानी जाती है। उनकी सरलता और उपलब्धता के कारण ठाणे-कल्याण में शिवसेना के प्रति व्यापक सकारात्मक माहौल रहा है पर आरोप यह है कि कल्याण पूर्व में कुछ स्थानीय नेता व्यक्तिगत राजनीतिक वर्चस्व बनाए रखने के लिए नेतृत्व की छवि का उपयोग और कई बार दुरुपयोग कर रहे हैं। कार्यकर्ताओं का कहना है कि अब यह मामला केवल संगठन में स्थानिक राजनीति का नहीं, बल्कि पूरे उत्तर भारतीय समाज के सम्मान का प्रश्न बन चुका है।

क्या सी.पी. मिश्रा को मिल रहा समर्पण के जवाब में उपेक्षा ?

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि शीर्ष नेतृत्व ने समय रहते इस बढ़ते असंतोष पर ध्यान नहीं दिया, तो आगामी चुनावों में पार्टी को इसका भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। समर्पित कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटने से संगठन कमजोर होता है और समाज विशेष का विश्वास डगमगाना चुनावी समीकरणों को पूरी तरह बदल सकता है। कई लोग स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि यदि भेदभाव और अवसरों की कमी जारी रही, तो वे सम्मान और हिस्सेदारी के लिए अन्य विकल्प चुनने में देर नहीं करेंगे।कल्याण पूर्व की यह स्थिति आने वाले समय में स्थानीय राजनीति के समीकरणों को बदल सकती है। उत्तर भारतीय समाज की नाराजगी बढ़ी, तो इसका प्रभाव न केवल शिवसेना की चुनावी तैयारियों पर दिखेगा, बल्कि विपक्षी दलों के लिए भी नए अवसर पैदा करेगा। आगामी कुछ सप्ताह यह तय करेंगे कि शिवसेना इस असंतोष को शांत कर पाती है या यही मुद्दा किसी बड़े राजनीतिक बदलाव की दिशा तय करने वाला साबित होता है।

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