चिताओं की अधजली लकड़ियों से कई घरों के चूल्हे जलते हैं

 वाराणसी : जिंदा रहने तक साधन-संपन्न आदमी घूमने और खाने से लेकर अपने एक से एक शौक पूरे करने के लिए कई जतन करता है। महंगे होटलों में खाने के साथ विभिन्न तरह की सुख-सुविधाएं भोगता है। वहीं दूसरी ओर महाश्मशान मर्णिकर्णिका घाट पर हर दिन जलने वाली चिताओं की बची अधजली लकड़ियों से कई घरों के चूल्हे जलते हैं। महाश्मशान के चौधरियों के घरों में रसोई चलती है। हर दिन करीब सौ परिवारों का भोजन चिताओं की अधजली लकड़ियों से बनता है। यह क्रम कब से चल रहा इस बारे में कोई बताने वाला नहीं। लकड़ियों के सहारे इनकी पूस की रात भी कटती है।

मणिकार्णिका घाट के कई चौधरियों में से एक 50 वर्षीय माता प्रसाद चौधरी बताते हैं कि हर दिन विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले 200 से अधिक शवों का यहां पर अंतिम संस्कार होता है। शवों को जलाने के बाद जो लकड़ी बच जाती है उसे एकत्र करते हैं। मीरघाट स्थित उनके व अन्य परिवार के लोग लकड़ी का वितरण कर उसी से सुबह और शाम भोजन तैयार करते हैं। पीढि़यों से चल रहा ये सिलसिलामाता प्रसाद कहते हैं कि यह कब से हो रहा इस बारे में वे कुछ नहीं जानते। उन्हें तो बस इतना पता है कि यह काम पीढि़यों से होता आ रहा। उनके सहित अन्य करीब 100 परिवार चिताओं की बची लकड़ी पर खाना बनाते हैं|अधिक होने पर लकड़ी संत कीनाराम अघोर आश्रम पड़ाव भेज दी जाती है। जाड़े में चौधरियों के घर में इसी लकड़ी को जलाकर अलाव तापते हैं।

रिपोर्टर

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