जीवन के रथ का सारथी भगवान कृष्ण को बनाओ- बल्लभाचार्य जी
- Hindi Samaachar
- Feb 19, 2020
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सीधी ।। श्रीराम जानकी मन्दिर में हो रही श्रीमदभागवत कथा के छठवे दिन भगवान श्री कृष्ण की नटखट बाल लीलाओं ,प्रहलाद चरित्र बलि-वामन प्रसंग, गोवर्धन पूजा एवं छप्पन भोग का विस्तार से वर्णन किया गया। कथा का शुभारम्भ यजमान धीरेन्द्र सिंह भज्जू द्वारा व्यासपीठ का पूजन कर प्रारम्भ किया गया।ब्यास गद्दी पर विराजमान अनंत श्री विभूषित श्री राम हर्षण दास जी महाराज के कृपापात्र जगतगुरू स्वामी श्री बल्लभाचार्य जी महाराज ने कथा में कहा कि ’’यशोदा मइया के लाला ने करवट बदलो है तो पूरे बृंदावन में बधाइयों का दौर शुरू हो जाता था। ’’यशोदा मइया के लाला ने बुकुइयां कियो है तो नंदबाबा के घर कन्हैया के दर्शन करने बृंदाबन वासियों का आना जाना लगा रहता था। इस दौरान बधाई गीतो का ऐसा गान हुआ जिसे सुन श्रद्धालू भक्तगण अनंदित होकर झूमते नाचते दिखाई दे रहे थे।वही यशोदा के लल्ला की माखन चोरी पर श्रद्धालू भक्तगण ठहाके लगा कर हस रहे थे। श्रोताओ की माने तो ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे हम सब बृन्दावन की गलियो में भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं को देख रहे है। कथा में पूतना बध सहित कंश द्वारा मथुरा से भेजे गये राक्षसों का भगवान द्वारा किये गये संहार का विस्तार से वर्णन किया गया। आगे की कथा में स्वामी श्री बल्लभाचार्य जी महाराज ने गोवर्धन पूजा का वर्णन करते हुए कहा कि नन्दगांव में पूजा की तैयारियां जोर शोर से चल रही थी। बालक कृष्ण ने मां यशोदा और नंदबाबा से पूजा के बारे में पूछा तो उन्होंने इंद्र की पूजा की बात बताई। इस पर भगवान कृष्ण ने कहा कि आप लोग सबकुछ देने वाले गोवर्धन की पूजा क्यों नहीं करते इंद्र तुम्हें क्या देते हैं। मां यशोदा के इंद्र के नाराज होने की बात कहने पर उन्होंने इंद्र के बजाए गोवर्धन पूजा की जिद पकड़ ली। अंत में सभी को कृष्ण की बात माननी पड़ी। भगवान की लीला कोई नहीं जानता। यह बात इंद्र को पता चली तो वह आग बबूला हो गये और ब्रजवासियों को सबक सिखाने के लिए तेज आंधी और बारिश शुरू कर दी। इससे सभी लोग परेशान हो कृष्ण को कोसने लगे। बचाव की सारी व्यवस्थाएं फेल होने पर भगवान कृष्ण ने अपनी उंगली में गोवर्धन पर्वत को उठाकर सभी की रक्षा की। इससे उन्होंने लोगों को सामूहिकता से हर समस्या के समाधान का संदेश दिया। परमात्मा की लीलाएं सदैव मनुष्य के लिए रहस्य बनी हुई है, क्योंकि वह परमात्मा को बुद्धि के द्वारा ही समझना चाहता है, जो संभव नहीं इसलिए रावण, कंस, दुर्योधन जैसे लोग भी प्रभु की लीलाओं से धोखा खा गए। प्रभु की प्रत्येक लीला में आध्यात्मिक रहस्य छिपा होता है। बालक धु्रव की भक्ति निष्काम थी। भक्ति में स्वार्थ नहीं होना चाहिए।अहंकार का अंधकार हमारे ज्ञान रूपी प्रकाश को ढंक लेता है। यह अज्ञान ही सारे पापों की जड़ है। भागवत मोक्ष की ऐसी कथा है जो हर युग में शाश्वत और प्रासंगिक है। ईश्वर की लीलाएं अलौकिक होती है, उन्हें आप और हम नहीं समझ सकतें। सुख और दुख जीवन के क्रम है, इन्हें बदलना भगवान के सिवाय किसी और के बूते की बात नहीं हो सकती। दुख का सामना धैर्य और संयम से करना चाहिए। जीवन के रथ का सारथी भगवान कृष्ण को बनाओ जीवन की समस्त समस्याओं का समाधान हो जाएगा। ज्ञात हो कि सीधी की पावन धरती पर पहली बार श्री राम महायज्ञ के साथ-साथ श्री राम कथा एवं श्री मदभागवत कथा का एक साथ इतना भव्य आयोजन किया गया है जहां प्रातः7 बजे से रात्रि 10 बजे तक निरंन्तर भक्तिमय अमृत वर्षा हो रही है।
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