जनपद में जे०ई०/ए०ई०एस०रोग के रोकथाम हेतु चूहा व छछुंदर नियंत्रण कार्यक्रम 31 अक्टूबर तक

देवरिया ।। जिला कृषि रक्षा अधिकारी रतन शंकर ओझा ने बताया है कि जनपद में जे0ई0/ए0ई0एस0 रोग की रोकथाम हेतु विशेष संचारी रोग नियंत्रण पखवाडा-5 के अन्तर्गत चूहा एवं छछूंदर नियंत्रण कार्यक्रम  आज से 31 अक्टूबर तक चलेगा। अभियान के अन्तर्गत कार्यक्रम चाकर समस्त कृषकों/जनसमुदायों को रोग से बचाव एवं नियंत्रण हेतु जागरुक किया जायेगा। उन्होने बताया है कि चूहा नियंत्रण का साप्ताहिक कार्यक्रम अन्तर्गत प्रथम दिन क्षेत्र भ्रमण एवं कार्यस्थल की पहचान करना, दूसरा दिन खेत/क्षेत्र का निरीक्षण एवं बिलो को बन्द करते हुए चिन्हित कर झण्डे लगाये, तीसरा दिन खेत/क्षेत्र का निरीक्षण कर जो बिल बन्द हो वहां झण्डे हटा दे, जहां पर बिल खुले पाये वहां पर झण्डा लगे रहने दे। खुले बिल में एक भाग सरसों का तेल एवं 48 भाग भुना चना/गेहूँ/चावल आदि से बने चारे को बिना जहर मिलाये बिल में रखें। चैथा दिन बिलो का निरीक्षण कर बिना जहर का चारा पुनः रखें। पाचंवा दिन जिंक फास्फाईड 80 प्रतिशत की 01 ग्राम मात्रा को 01 ग्राम सरसों तेल व 48 ग्राम भुना चना/गेहूँ आदि से बने चारे को बिल में रखें। छठवां दिन बिलो का निरीक्षण करे तथा मरे चूहे को एकत्र कर जमीन में गाड दें। सातवां दिन बिलो को पुनः बन्द कर दे। अगले दिन यदि बिल खुले पाये जाए तो कार्यक्रम पुनः अपनायें।

उन्होने बताया है कि चूहे मुख्यतः दो प्रकार के होते है घरेलू एवं खेत/क्षेत्र के चूहे। घरेलू चूहा घर में पाया जाता जाता है जिसे मूषक कहते है। खेत/क्षेत्र में चूहों में फील्ड रैट साप्ट  फील्ड रैट एवं फील्ड माउस प्रमुख है, भूरा चूहा खेत/क्षेत्र व घर दोनो में तथा जुगली चूहा जंगल रेगिस्तान, झाडियों में पाया जाता है। चूहे की संख्या नियंत्रित करने के लिये अन्न भण्डारण पक्का कंक्रीट तथा धातु से बनी बखारी/पात्रों में करना चाहिये ताकि उनको भोज्य पदार्थ सुगमता से उपलब्ध न हो। चूहे अपना बिल झाडियों, मेडों, कूडो आदि में स्थायी रुप से बनाते है। खेतों/क्षेत्रो का समय समय पर निरीक्षण एवं साफ-सफाई करके उनकी संख्या नियंत्रित कर सकते है। चूहों के प्राकृतिक शत्रुओं बिल्ली, सांप, उल्लू, बाज, चमगादड आदि द्वारा चूहों को भोजन के रुप में प्रयोग किया जाता है। इनकों संरक्षण देने से चूहों की संख्या में नियंत्रित हो सकती है। एल्यूमिनियम फास्फाईड दवा की 3-4 ग्राम मात्रा प्रति जिन्दा बिल में डालकर बिल बन्द कर देने से उससे निकलने वाली गैस से चूहे मर जाते है।

उन्होने बताया है कि विशेष संचारी रोग एवं दस्तक अभियान 2020 के द्वितीय चरण का आयोजन 31 अक्टूबर तक कराया जाना नियत है। कोविड-19 के संक्रमण के दृष्टिगत कृषि विभाग द्वारा अभियान के अन्तर्गत कृषि रक्षा इकाईयों तथा राजकीय बीज भण्डारों पर आने वाले कृषकों को 5-10 के समूह में जागरुक किया जायेगा, जिसमें संचारी रोग के प्रचार-प्रसार और इससे होने वाले हानियों तथा मानवीय जीवन पर पडने वाले दुष्प्रभावों से अवगत कराने हेतु जागरुक किया जायेगा क्योकि जे0ई0/उ0ई0एस0 एवं अन्य संचारी रोगो के प्रचार के लिये अन्य कारकों के साथ-साथ चूहा एवं छछूंदर भी उत्तरदायी है, इस लिये इन रोगो के रोकथाम के लिये चूहा एवं छछूंदर का प्रभावी नियंत्रण आवश्यक है। चूहा एवं छछूंदर नियंत्रण हेतु कृषकों एवं जन सामान्य को जागरुक करने हेतु चूहा एवं छछूंदर नियंत्रण संबंधी 6 दिवसीय योजना एवं संस्तुत रसायनों के प्रयोग में सावधानियों को राजकीय बीज भंडारों एवं कृषि रक्षा इकाईयों पर वाल पेटिंग या पोस्टर चस्पा किया जायेगा। इसके साथ-साथ चूहा एवं छछूंदर नियंत्रण से संबंधित साहित्य भी कृषकों को वितरित किया जायेगा। चूहा नियंत्रण कार्यक्रम अभियान के रुप में चलाया जायेगा जिसमें स्वयं सेवी संगठनों स्वयं सहायता समूहों किसान क्लबों, कृषि तकनीकी प्रबन्ध अभिकरण(आत्मा), बीज/उर्वरक/रसायन विक्रेता इफ्कों सहकारिता का सहयोग प्राप्त किया जायेगा। 01 अक्टूबर से 31 अक्टूबर के मध्य चूहा नियंत्रण के विषय में परिचर्चा मोबाईल, व्हाट्सप ऐप इत्यादि के माध्यम से जनपद/तहसील/ब्लाक, ग्राम पंचायत स्तर पर चूहा नियंत्रण अपनाने के लिये जन सामान्य को प्रोत्साहित किया जायेगा। स्थानीय ग्रामवासियों की सहभागिता से चूहा नियंत्रण से संबंधित नारों की वाल राईटिंग कराकर भी लोगो को जागरुक किया जायेगा। इस अभियान के क्रियान्वयन में जन सामान्य का सहयोग प्राप्त करते हुए जनसहभागिता सुनिश्चित करने पर विशेष बल दिया जायेगा।

उन्होने बताया है कि जे0ई0रोग के विषाणु के वाहक मच्छरों को कुछ विशेष पौधों को लगकर नियंत्रण किया जा सकता है जैसे गेंदा, गुलदाउदी, सिट्रोनेला, रोज मैरी, तुलसी, लेवेन्डर, जिरैनियम। ये पौधे तीव्र गन्ध वाले एसेन्शियल आयल अवमुक्त करतें है, जिनसे मच्छर दूर भाग जाते है। इस प्रकार इन फूल पौधो को घरों के आस-पास लगाने से वातावरण तो सुगन्धित होता ही है साथ ही खतरनाक मच्छरों से भी बचाव होता है। मेंथा जैसे पौधे चूहों एवं छछूंदरों आदि जीव जन्तुओं को अत्यन्त प्रतिकर्षित करतें है। कुछ पौधों की प्रजातियों द्वारा तो  ऐसे रासायनिक तत्व मुक्त किये जाते है, जो मच्छरों की प्रजनन क्षमता कम कर देते है। इस प्रकार इन पौधो के रोंपड द्वारा भी मच्छरों/चूहों को दूर कर जे0ई0/ए0ई0एस0 रोग से बचाव किया जा सकता है।

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