कालाजार को जड़ से खत्म करने के लिए सिंथेटिक पैराथायराइड का छिड़काव जरूरी : डॉ. शैलेन्द्र
- रामजी गुप्ता, सहायक संपादक बिहार
- Aug 23, 2021
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- 24 से 27 अगस्त पड़री तथा 28 अगस्त से चार सितंबर गोप नुआंव में होगा दवाओं का छिड़काव
- वीबीडीओ ने सदर प्रखंड के स्वास्थ्य कर्मचारियों के साथ बैठक कर बनाई रणनीति
- सम्बंधित गांव में आशा कार्यकर्ता दवाओं के छिड़काव के पूर्व लोगों को देंगी सूचना
बक्सर ।। कालाजार उन्मूलन के लिए जिला स्वास्थ्य समिति पूरी तरह से कृतसंकल्पित है। कालाजार को जड़ से खत्म करने के उद्देश्य से जिले के चिह्नित गांवों में साल में दो बार सिंथेटिक पैराथायराइड (एसपी) पाउडर का छिड़काव किया जाता है। इस वर्ष के पहले चक्र के तहत मंगलवार से सदर प्रखंड के दो गांव में दवाओं का छिड़काव किया जाना है। जिसको लेकर जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. शैलेन्द्र कुमार ने सदर प्रखंड के स्वास्थ्य कर्मियों के साथ बैठक की। जिसमें अभियान को सफल बनाने को लेकर चर्चा की गई। बैठक में डॉ. शैलेन्द्र कुमार ने बताया, 24 से 27 अगस्त पड़री तथा 28 अगस्त से चार सितंबर गोप नुआंव में दवाओं का छिड़काव होगा। जिसकी सूचना आशा कार्यकर्ताओं के द्वारा ग्रामीणों को दी जाएगी। ताकि, लोग अपने अपने घरों में खाद्य सामग्री व अन्य जरूरी सामानों को ठीक से ढक लें। कालाजार को जड़ से खत्म करने के लिए लगातार तीन साल तक सिंथेटिक पैराथायराइड का छिड़काव बेहद जरूरी होता है। तभी जाकर उक्त क्षेत्र से कालाजार का उन्मूलन संभव हो सकेगा। इस दौरान बीईई मनोज चौधरी, बीसीएम प्रिंस कुमार सिंह, वीबीडीएस अभिषेक कुमार सिन्हा, बीएचआई उदय कुमार, पीएमडब्लू नागेश दत्त पांडेय व अन्य स्वास्थ्य कर्मी मौजूद रहे ।
डॉ. शैलेन्द्र कुमार ने कहा, कोरोना के मद्देनजर छिड़काव कर्मियों को पीपीई किट उपलब्ध कराया गया है। विभाग की तरफ से उन्हें मास्क तथा ग्लब्स दिया गया है। अभियान के दौरान कोरोना से बचाव के लिए छिड़काव में लगे सभी दलों को सोशल डिस्टेंसिंग का भी पालन करना है। उन्होंने बताया, कालाजार समाज के लिए काली स्याह की तरह है। इस बीमारी को जन-जागरूकता व सामूहिक सहभागिता से ही हराया जा सकता है। कालाजार तीन तरह के होते हैं, जिसमें वीएल कालाजार, वीएल प्लस एचआइवी और पीकेडीएल है।
कालाजार का असर शरीर पर धीरे-धीरे पड़ता है :
कालाजार एक संक्रमण वाली बीमारी है जो परजीवी लिस्मैनिया डोनोवानी के कारण होता है। यह एक वेक्टर जनित रोग भी है। इस बीमारी का असर शरीर पर धीरे-धीरे पड़ता है। कालाजार परजीवी बालू मक्खी के जरिये फैलती है जो कम रोशनी वाले और नम जगहों-जैसे मिट्टी की दीवारों की दरारों, चूहे के बिलों तथा नम मिट्टी में रहती है। बालू मक्खी यही संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलाती है। इस रोग से ग्रस्त मरीज खासकर गोरे व्यक्तियों के हाथ, पैर, पेट और चेहरे का रंग भूरा हो जाता है। इसी से इसका नाम कालाजार यानी काला बुखार पड़ा।
कालाजार के लक्षण
रुक-रुक कर बुखार आना, भूख कम लगना, शरीर में पीलापन और वजन घटना, तिल्ली और लिवर का आकार बढ़ना, त्वचा-सूखी, पतली और होना और बाल झड़ना कालाजार के मुख्य लक्षण हैं। इससे पीड़ित होने पर शरीर में तेजी से खून की कमी होने लगती है।
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