कविता: नदी गोमती और कैथी.....!
- संदीप मिश्र, ब्यूरो चीफ जौनपुर
- Oct 28, 2023
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*नदी गोमती और कैथी.....!*
नदी गोमती क्यों कैथी आई,
क्यों आकर वह गंग समाई...?
ना कहीं पढ़ा अभी तक,
ना कुछ सुना...अभी तक भाई...
ऋषि वशिष्ठ की यह बेटी ...
थक सी गई होगी शायद,
लोगों के धोते-धोते पाप...!
ढूँढ़ रही होगी वह मन से,
मिल जाए कोई स्थल निष्पाप...
जहाँ शान्तमना होकर,
वह ले पाए विश्राम....
इस आशा-प्रत्याशा में उसने,
विचार किया होगा मन में...
क्यों उत्तर बहती गंगा इस उपवन में...
कुछ तो कारण होगा....!
जो यहाँ दिशा बदली हैं गंगा...
राजा भगीरथ के पदचिन्हों ने भी,
उसको विश्वास दिलाया होगा...
ऋषि मार्कण्डेय की अमरता का भी,
एहसास उसे हुआ होगा....
जान लिया होगा उसने...!
गंगा की पाप-नाशिनी शक्ति...
सोचा होगा यह भी मन में...
यहीं...मुफ्त मिलेगी मुझको...!
औघड़दानी...शिव की भक्ति...
इसी चाह में...मतवाली होकर...
भूल गई होगी वह...सब कुछ अपना..
फिर कैथी की पावन धरती में ही...
गंगा में मिलने की चाहत को,
मान लिया उसने जीवन का सपना....
फिर तो...दोनों बाहें फैलाए....
आतुर-विह्वल-पागल हो गई वह....!
पतित-पावनी में मिल जाने को....
अंग-भंग जो हुआ कहीं पर,
ना उसको कोई इसकी चिंता थी...
बस आपना...सपना सच करने की...
मन में उसके व्याकुलता थी...
मान चुकी थी वह गंगा को सागर,
बस जल्दी से मिलने की उत्कंठा थी..
आनन-फानन में ही उसने...!
अंग-अंग सब शिथिल किया,
खुद की आत्मा तक को भी...!
गंग में उसने विलीन किया...
वाम दिशा से गंगा ने भी,
उसको भरपूर दुलार दिया...
दोनों बाहें फैलाकर...!
भर उसको अँकवार लिया..
फिर तो....नदी गोमती ने....जमकर...
पावन गंगा में स्नान किया...
सफ़ल हुआ अब आराधन था...सो..!
उसने गंगा की गोदी में,
प्रसन्नचित विश्राम लिया...
दो सुर मिलकर एक हुए थे अब,
ऋषियों ने इसको संगम नाम दिया...
नित बैठ किनारे इसके..!
मन्त्रपूत ऋषियों ने मिलकर,
यहीं अमरता का गान किया...
सच मानो मित्रों...कैथी में...
जो नदी गोमती मिली गंग से...
एक मनोरम अध्याय जुड़ा,
पवित्र हुई धरा कैथी की...
एक तीरथ को जगमग विस्तार दिया..
*कैथी*... वाराणसी स्थित वह पवित्र गाँव जहाँ नदी गंगा और गोमती का संगम है।यहीं पर मार्कण्डेय महादेव का प्रसिद्ध मन्दिर है,जहाँ यमराज जी ने भी हार मानी थी।
रचनाकार....
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक
जनपद... कासगंज
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