"पेड़ों को दी जा रही है फांसी — जिम्मेदार कौन ? सीमेंट की सड़कें निगल रहीं हैं हरियाली"

विकास की अंधी दौड़ में गला घोंटी जा रही है हरियाली


भिवंडी। भिवंडी शहर में जब-जब विकास के नाम पर नई सड़कों का निर्माण होता है, तब-तब प्रकृति पर कुठाराघात होता है। आरसीसी (सीमेंट कंक्रीट) से बनी सड़कों के किनारे लगे वर्षों पुराने पेड़ आज घुटन और उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं। जड़ों तक न हवा पहुंच रही है, न पानी — पेड़ खड़े हैं, लेकिन धीरे-धीरे मर रहे हैं। इन हालातों में यह कहना गलत नहीं होगा कि पेड़ों को फांसी पर लटका दिया गया है, वो भी पूरी योजनाबद्ध तरीके से। अब सवाल उठता है — इस हरियाली की हत्या का दोष किसके सिर जाएगा?

सीमेंट की परत में जड़ों की घुटन ::::

शहर की नई और चौड़ी सड़कों ने पुराने पेड़ों को चारों ओर से सीमेंट से घेर दिया है। जड़ों को खुली मिट्टी नहीं मिल रही, जिससे नमी और ऑक्सीजन का प्रवाह रुक गया है। यही कारण है कि कई पेड़ भीतर से सड़ रहे हैं और मामूली आंधी या बारिश में धराशायी हो रहे हैं।

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 "जैसे किसी जीवित इंसान को ज़िंदा दफन कर दिया जाए, कुछ वैसी ही स्थिति है इन पेड़ों की।"

— स्थानीय पर्यावरणविद्

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पालिका की चुप्पी, उद्यान व बांधकाम विभाग की लापरवाही :::

भिवंडी महानगर पालिका के उद्यान व बांधकाम विभाग की भूमिका पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। सड़कों के निर्माण से पहले वृक्ष संरक्षण के कोई प्रभावी उपाय नहीं किए जा रहे। वर्षों पुराने पेड़ों को संरक्षित करने के बजाय उन्हें “नियति के हवाले” छोड़ दिया गया है। वहीं दूसरी ओर, इन्हीं विभागों द्वारा कागजों में "हरियाली अभियान" और "वृक्षारोपण कार्यक्रम" की बातें की जाती हैं — जो हकीकत से कोसों दूर हैं।

कानून के होते हुए भी खुलेआम उल्लंघन ::::

वन संरक्षण अधिनियम, 1980 और नगर नियोजन अधिनियम के अनुसार निर्माण कार्यों के दौरान पेड़ों की सुरक्षा अनिवार्य है। लेकिन स्थानीय स्तर पर न तो इनका पालन हो रहा है, न कोई निगरानी। ठेकेदारों की सुविधा के लिए पेड़ों के चारों ओर सीमेंट डाल दिया जाता है, जिससे उनका जीवनचक्र बाधित हो जाता है।

प्रशासन और सिस्टम से तीखे सवाल: ::::

1. क्या नगर पालिका ने पेड़ों के संरक्षण की कोई योजना तैयार की थी ?

2. क्या निर्माण से पहले पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन किया गया ?

3. क्या जिम्मेदारी तय होगी, यदि पेड़ों के गिरने से जान-माल का नुकसान हो ?

4. क्या विकास की योजनाओं में प्रकृति को भी कोई स्थान मिलेगा ?

समाधान — अभी भी है उम्मीद

विशेषज्ञों के अनुसार, यदि समय रहते कदम उठाए जाएं तो इन पेड़ों को बचाया जा सकता है जैसे ::::

1) पेड़ों की जड़ों के चारों ओर कम-से-कम 1 मीटर का खुला स्थान छोड़ा जाए। 

2) जड़ों तक पानी पहुंचाने के लिए परकोटे बनाकर पाइपिंग व्यवस्था हो। 

3) सीमेंट की बजाय प्राकृतिक तत्वों जैसे ईंट-रेत या खुली मिट्टी का इस्तेमाल किया जाए। 

4) हर निर्माण योजना में ग्रीन इंजीनियरिंग मानकों को अनिवार्य किया जाए।

 अब भी वक्त है — वरना बहुत देर हो जाएगी

विकास जरूरी है, लेकिन प्रकृति की कीमत पर नहीं ::::

यदि जल्द कार्रवाई नहीं हुई तो आने वाले वर्षों में शहर सिर्फ हरियाली ही नहीं, बल्कि शुद्ध हवा, पक्षियों की चहचहाहट और पर्यावरण संतुलन से भी वंचित हो जाएगा.अब वक्त आ गया है कि जनता, मीडिया और प्रशासन — तीनों मिलकर यह सवाल उठाएं: "क्यों दी जा रही है पेड़ों को फांसी ?" "और कौन है इसका जवाबदार ?"

रिपोर्टर

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