मेढ़ा जालसाजी प्रकरण- मीडिया ट्रायल : दोष किसी का कसूरवार किसी को ठहराया जा रहा

मीडिया को दोनों पक्षों को जानने के बाद खबर देनी चाहिए थी , मीडिया ट्रायल से आहत

मेढ़ा जौनपुर। पिछले कुछ दिनों से यह खबर ख्याति प्राप्त मीडिया संस्थानों में लगातार आ रही है कि दूसरे के खतौनी पर जालसाजी से किसी अन्य व्यक्ति ने बैंक से लोन ले लिया। यहां सोचने वाली बात यह है कि क्या  बैंक से किसी अन्य व्यक्ति की खतौनी पर किसी दूसरे व्यक्ति को कृषि ऋण प्राप्त हो सकता है ?यदि नहीं , तो फिर क्यों त्रिवेणी प्रसाद तिवारी पुत्र सीताराम तिवारी को मीडिया द्वारा जालसाज बताया जा रहा है। यहां यह सोचने का विषय है कि मीडिया भी किसी मामले की गहराई में ना जाकर अपनी मर्जी से जैसा उचित समझ में आता है वैसा छापने में ही रुचि ले रहा है जो बेहद दुखद और गंभीर विषय है। मीडिया ट्रायल बेहद ही संगीन मामला है जिसमे बिना दूसरे पक्ष को समझे ही दोषी ठहराया जा रहा है। मामला मेढ़ा के त्रिवेणी प्रसाद तिवारी जी का है जिन्हें आजकल की गैर जिम्मेदाराना पत्रकारिता करने वालों ने विलेन बना दिया है।तिवारी जी से संपर्क करने पर पता चला कि उन्होंने बैंक में अपना आधार कार्ड त्रिवेणी प्रसाद तिवारी के नाम का  लगाया है और अपनी फोटो भी लगाई है तथा त्रिवेणी प्रसाद तिवारी के नाम से दस्तखत भी किए हुए हैं ।आखिर बैंक ने क्यों त्रिवेणी प्रसाद मिश्र की जमीन पर त्रिवेणी प्रसाद तिवारी को लोन दे दिया ? यह बैंक के जांच का विषय था जिसमें बैंक ने पूरी-पूरी लापरवाही की। या यूं कहें कि खतौनी में सरनेम न लगा होने की वजह से बैंक को भी यह जानने में परेशानी हुई है। यह एक गंभीर विषय है कि यदि किसी गांव में किसी व्यक्ति का नाम व वल्दियत मेल खा रहे हो तो खतौनी में सरकार द्वारा उनकी अलग-अलग पहचान कैसे की जाए ? इसलिए सरनेम भी साथ में लगा होना चाहिए अन्यथा ऐसे ही अच्छे खासे लोग मीडिया में बदनाम किए जाएंगे । त्रिवेणी प्रसाद तिवारी को दुख इस बात का है कि लोन तो हम भरेंगे ही, हम उनके साथ कोई जालसाजी नहीं कर रहे हैं लेकिन जिस तरीके से मीडिया में मेरे सम्मान के साथ खिलवाड़ किया गया, आख़िर उसकी भरपाई कैसे होगी? मेरे पैसा भर देने के बाद तो उनका मामला समाप्त हो जाएगा उनकी भूमि बंधक से मुक्त हो जाएगी जो कि मेरी जानकारी में नहीं थी, किंतु क्या मेरा सम्मान पुनः वापस आ सकेगा?  उन्होंने त्रिवेणी  प्रसाद मिश्र की मौत पर दुख जताया और कहा कि वो पहले से ही दमा के मरीज थे जिससे उनकी मृत्यु हो गई और उनके घरवालों ने मुझे बदनाम करने के लिये उनका पोस्टमार्टम भी नहीं करवाया। उन्होंने बताया कि उन्होंने 2013 में ही यह ऋण प्राप्त किया था जिसको भरने के लिये वो खुद परेशान थे।बाद में योगी सरकार की योजना के चलते उनको 1लाख की माफी भी मिली ।पिछले महीने की 29 तारीख को उनकी जानकारी में यह बात आई कि उनको त्रिवणी प्रसाद मिश्र की जमीन पर ऋण प्राप्त हुवा है । सहसा तो उन्हें यह विश्वास ही नहीं हुवा।वो इस बात को लेकर आश्चर्य में थे कि कैसे  तहसील वालों से लेकर बैंक वालों तक को यह बात समझ में नहीं आई।खैर जो भी हुवा, उसमें मेरा दोष नहीं था फिर भी मिश्रा जी के परिवारवालों ने  मीडिया वालों को  ,तहसील में ,थाने में झूठी खबर देकर मुझे जालसाज बताने का प्रयास किया गया और मेरे सम्मान की धज्जी उड़ाई। यह गलत है,जिसका मुझे बेहद अफसोस है।
निश्चित रूप से ऐसी गैर जिम्मेदाराना पत्रकारिता शर्मनाक है जिसकी वजह से किसी सम्मानित व्यक्ति के सम्मान को धब्बा लगे। 
    सबसे दुखद बात तो यह है कि सरकार को भी ऐसे मामलों में कोई नियम बनाना चाहिये जिनके नाम व वल्दियत समान हों। अगर खतौनी में सरनेम लगा होता तो सम्भव है कि यह घटना न होती।

रिपोर्टर

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