क्या आप जानते है ? वायु प्रदूषण से कमजोर होती है शरीर की हड्डियां

वायु प्रदूषण के बढ़ने से शरीर में खनिज की मात्रा कम होने के कारण हड्डियों के टूटने का खतरा बढ़ सकता है, खासकर युवाओं में भी। एक प्रमुख अध्ययन में यह दावा किया गया है। द लैनसेट प्लैनेटरी हेल्थ मैग्जीन में प्रकाशित अध्ययन में पहली बार अस्पताल में उन समुदायों के लोगों के हड्डियां टूटने के मामलों के बारे में जानकारी दी गई है, जहां पार्टिक्यूलेट मैटर उच्च स्तर पर हैं, जो कि वायु प्रदूषण का उच्च घटक है। 

भारत में लोग अधिक प्रभावित
भारत और चीन लंबे समय से स्मॉग की समस्या से परेशान हैं। दिल्ली में वायु प्रदूषण जानलेवा साबित हो रहा है। ऐसे में कोलंबिया यूनिवर्सिटी से संबद्धित मेलमन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की रिपोर्ट और भी चिंताजनक है। इस नई रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण का नकारात्मक असर हडि्डयों की बीमारी के रूप में लंबे समय तक बना रह सकता है। वहीं कुछ रिसर्च यह बताती हैं कि दक्षिण एशियाई देशों में ऑस्टियोपोरोसिस गंभीर रूप से बढ़ा है। इस बीमारी का सर्वाधिक असर भारत पर देखा जा रहा है 

06 करोड़ से ज्यादा होंगे मरीज 2025 तक 
यूके की यूनिवर्सिटी ऑफ सुरे द्वारा जारी एक रिसर्च में खुलासा हुआ है कि दक्षिण एशियाई देश ऑस्टियोपोरोसिस से गंभीर रूप से पीड़ित हैं। वहीं एक अन्य जानकारी के मुताबिक भारत में हर साल करीब 1.5 करोड़ लोग इस बीमारी का शिकार हो रहे हैं। रिसर्च के मुताबिक वर्ष 2025 तक देश में ऑस्टियोपोरोसिस के मरीजों की संख्या 6 करोड़ से ज्यादा होगी। इस बीमारी का बुरा पहलू यह है कि इसके बारे में जानकारी तब पता चलती है जब शरीर को इससे भारी नुकसान पहुंच चुका होता है। देश में पिछले दो दशकों के दौरान इस बीमारी से प्रभावित होने वालों की उम्र में लगातार गिरावट आई है। माना जाता रहा है कि यह बीमारी बुजुर्गों को ही होती है, लेकिन अब 30 वर्ष तक के युवा भी ऑस्टियोपोरोसिस के मरीज के रूप में सामने आए हैं। 

महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित
50 साल की उम्र के बाद हर तीन में से एक महिला को यह समस्या होती है। भारत जैसे देशों के लिए यह बीमारी और खतरनाक है, क्योंकि यहीं पर इसका सबसे अधिक खतरा है। इंटरनेशनल ऑस्टियोपाेरोसिस फाउंडेशन के मुताबिक 2050 तक दुनिया में हुए कुल ऑस्टियोपोरोसिस हिप फ्रैक्चर में 50 फीसदी हिस्सेदारी केवल एशिया की रहेगी। कारण है कि यहां की अधिकांश जनसंख्या गांवों में रहती है, जहां पर इस बीमारी की जांच नहीं हो पाती है। यहां के खानपान में भी जरूरी पोषक तत्व शामिल नहीं हो पाते हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के अनुसार प्रतिदिन हर व्यक्ति को 1000 से 1300 एमजी कैल्शियम लेना चाहिए, लेकिन एशिया के वयस्क लोगों में यह औसतन करीब 450 एमजी प्रतिदिन है। इस समय भारत में 2.5 करोड़ से ज्यादा लोग इस बीमारी की चपेट में हैं। जबकि करीब पांच करोड़ लोगों का लो बोन मास हो चुका है। शहरी क्षेत्र में तो करीब 80 फीसदी लोगों में विटामिन डी की कमी है। 

क्या है ऑस्टियोपोरोसिस 
ऑस्टियोपोरोसिस में हड्डियां भुरभुरी हो जाती हैं क्योंकि इसमें हड्डियों का बोन मास कम हो जाता है। बीमारी में हड्डियों के दर्द के अलावा फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है। यह बीमारी मरीज को बेहद धीरे-धीरे होती है। इसमें बोन लॉस का पता नहीं चल पाता है। साथ ही यह बीमारी लगातार बढ़ती जाती है। इसी कारण इसे साइलेंट डिसीज भी कहा जाता है। बीमारी बढ़ने के साथ ही इलाज भी मुश्किल हो जाता है। इस कारण इसे तुरंत बढ़ने से रोकना चाहिए। दरअसल हमारी हड्डियां लिविंग टिश्यू होती हैं, इसलिए हमारे जन्म के बाद से लगातार हड्डियों का विकास होता है और वो मजबूत होती जाती हैं। कुछ बोन सेल्स लगातार बनती हैं, जबकि कुछ बोन सेल्स डेड होती रहती हैं। ऑस्टियोपोरोसिस में सेल्स डेड होने की प्रक्रिया नई बोन सेल्स बनने से तेज हो जाती है। पहले ऑस्टियोपोरोसिस को बुढ़ापे की बीमारी कहा जाता था, लेकिन बदलती लाइफ स्टाइल और फिजिकल एक्टिविटी कम होने से युवाओं में भी यह बीमारी बढ़ रही है। 

युवाओं में बढ़ रहा खतरा 
आमतौर पर यह माना जाता है कि ऑस्टियोपोरोसिस बीमारी महिलाओं में 45 से 50 साल की उम्र के बाद होती है। डॉक्टर्स का कहना है कि महिलाओं में एस्ट्रोजन की कमी से मेनोपॉज के बाद यह समस्या ज्यादा होती है। जबकि पुरुषों में यह बीमारी 55 साल के बाद होती है। हालांकि अब यह बीमारी भी कम उम्र के लोगों को होने लगी है। हमारी हड्डियां 35 से 40 साल की उम्र तक लगातार मजबूत होती रहती है और इसी दौरान वह पीक बोन मास बनाती है लेकिन कई बार स्वास्थ समस्याओं के चलते आॅस्टियोपोरोसिस कम उम्र में ही लोगों का अपनी गिरफ्त में ले रहा है। जब हड्‌डियां मजबूत होने की प्रक्रिया रुक रही है। 

ऑर्थराइटिस से अलग है ऑस्टियोपोरोसिस

  • ऑस्टियोपोरोसिस और ऑर्थराइिटस में फर्क होता है। ऑर्थराइिटस में मरीज के जोड़ों का कार्टिलेज यानी जोड़ों पर एक तरह का कवर चढ़ा होता है जो घिस जाता है। जबकि ऑस्टियोपोरोसिस में हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। 
  • ऑर्थराइिटस में कार्टिलेज डैमेज होने से नर्व्स का अंतिम हिस्सा एक्सपोज्ड हो जाता है और जब जोड़ाें पर वजन पड़ता है तो उसमें दर्द होता है। जिसे ऑस्टियोपोरोसिस होता है, उसे ऑर्थराइिटस होने का खतरा ज्यादा होता है। 
  • ऑर्थराइिटस जोड़ों में होता है जबकि आस्टियोपोरोसिस आमतौर पर सबसे अधिक कलाई, रीढ़, कंधे और कूल्हों की हड्डियों में अपना असर दिखाता है। 

बीमारी पहचानें, इलाज करें 
ऑस्टियोपोरोसिस पता करने के लिए कई टेस्ट हैं। बीमारी से बचने के लिए डॉक्टर्स कई तरह की दवाएं देते हैं। इसमें कैल्शियम और विटामिन डी—3 का सेवन फायदेमंद होता है। रोजाना 45 मिनट की एक्सरसाइज भी हड्डियों को मजबूत बनाती है।

फैक्ट्स एंड फिगर्स 
20 करोड़ महिलाएं दुनियाभर में ऑस्टियोपोरोसिस से पीड़ित हैं। इनमें सर्वाधिक करीब 66 फीसदी महिलाएं 90 साल की उम्र की हैं। जबकि 10 फीसदी महिलाएं 60 वर्ष की हैं। अब आंकड़ा युवा महिलाओं का भी बढ़ रहा है। 

रिपोर्टर

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