तनिक सुनो! मैं लंकेश रावण बोल रहा हूँ

जौनपुर ।। आज राम के हाँथों मेरे पराभव का दिन है ।सच कहूँ,आज का दिन यदि तुम्हारे लिए उत्सव है तो मेरे लिए भी किसी कीर्तिगान से कम नहीं है, क्योंकि मैने अपनी मृत्यु के समय राम से कहा था, 'हे प्रभु! आप मेरे जीते जी लंका में प्रवेश नहीं कर पाये लेकिन मैं आपके रहते ही आपके बैकुंठ धाम को जा रहा हूँ ।

तनिक सुनो! मैं लंकेश रावण बोल रहा हूँ ।सदियाँ बीत गईं तुम्हें मेरा पुतला जलाते हुए, लेकिन तुम न तो मेरी बुराइयों से कुछ सीख सके और न ही मेरी अच्छाइयों से ।मैने अपनी बहन शूर्पणखा के अपमान का बदला लेने के लिए सीता का हरण किया लेकिन उनकी इच्छा के विरुद्ध उनका स्पर्श तक नहीं किया ।सीता के वनवास का व्रत न खण्डित होने पाये इसके लिए उन्हें महल मे न रखकर अशोक वन में रखा ।सीता की देख-रेख में मैने महिला रक्षकों को  त्रिजटा के नेतृत्व में नियुक्त   कर रखा था।मैने एक स्त्री का अपमान भी किया तो सम्मानपूर्वक ।लेकिन मेरा पुतला जलाकर जय श्री राम का नारा लगाने वालों तुम्हारी इस कायनात में तो बहू बेटियाँ अपने ही घर में सुरक्षित नहीं हैं ।

तनिक सुनो! मैं लंकेश रावण बोल रहा हूँ ।मैने अपने राज्य मे प्रजा के स्वास्थ्य की रक्षा  के लिए सुषेण नामक प्रसिद्ध सुयोग्य वैद्य को लगा रखा था ।राम से मेरी शत्रुता थी लेकिन उनके अनुज लक्ष्मण का जीवन बचाने  जाने के लिए  मैने ही सुषेण को अपनी मौन स्वीकृति दी थी ।लेकिन मेरा पुतला जलाकर स्वएँ को मर्यादापुरूषोत्तम राम का अनुगामी व भक्त सिद्ध करने वालों वो तुम्ही हो जो अपने बूढ़े बीमार माँ -बाप तक को कभी वृद्धाश्रम मे तो कभी मरने के लिए सड़क पर छोड़ देते हो।

तनिक सुनो! मैं लंकेश रावण बोल रहा हूँ ।मैं घोर शिवभक्त था।मैने घोर तपस्या करके आकाशगामिनी विद्या व रूपपरिवर्तन विद्या प्राप्त की इसके अलावा  पचपन  विद्याओं के लिए मैने पृथक से तपस्या की ।मैने इन्द्रजाल ,कुमारतंत्र, रावणीयम्(संगीत),कामचाण्डाली ,नाड़ी  परीक्षा इत्यादि ग्रन्थों सहित शिवताण्डव स्तोत्र की भी रचना की ।मैने यत्र- तत्र फैली कितनी वैदिक ऋचाओं का कुशल सम्पादन किया ।मैं ज्ञान विज्ञान का प्रेमी था ।लेकिन मेरे पुतलों का दहन कर आत्मगौरव का झूठा सुख अनुभव करने वाले तुम!  अपनी प्रचीन सभ्यता व गौरव को खोते जा रहे हो ।

तनिक सुनो! तुम मुझे इस तरह से कब तक जलाते रहोगे? मैं तो तुम्हारे भीतर हूँ ।मैं तो तुम्हारे विचारों व कृत्यों में हूँ  ,पहले से कहीं अधिक बर्बर, पहले से कहीं अधिक अधम व विभत्स  रूप में। 

                                    लेखक अभिषेक उपाध्याय श्रीमंत 

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