पावर लूम कारीगरो सहित मालिकों की मदद करें सरकार, तीन महिने की बिजली बिल हो माफ --- परवेज़ खान ( PK)

भिवंडी।। भिवंडी शहर पावरलूम उद्योग की नगरी है.यहाँ पर छोटे छोटे पावरलूम कारखानों से कपड़ा बनाया जाता है. शहर के अधिकांश लोग इसी पावर लूम उद्योग से जुड़े हुए है। किन्तु देश में फैली वैश्विक महामारी कोरोना के कारण शहर की पूरी अर्थ व्यवस्था तहस नहस हो गयी है जिससे पटरी पर लाने के लिए सरकार को मजदूरों सहित पावरलूम मालिकों की मदद करना नितांत आवश्यक है।

भिवंडी शहर के वरिष्ठ समाजसेवक व कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता परवेज़ खान ( PK) ने अखिल भारतीय हिन्दी समाचार के माध्यम से सरकार से मांग किया है कि लाॅक डाउन के दरम्यान ( तीन महिने) घरेलू व पावरलूम कारखानों के बिजली बिल माफ करना चाहिए तथा मजदूरों व पावरलूम मालिकों को इस संकटकाल से उबारने के लिए ब्याज मुफ्त ऋण देना चाहिए। जिससे फिर से शहर में पावरलूम उद्योग खड़ा हो सकें।
     
गौरतलब हो कि मार्च महीने से कपड़ा उद्योग पूरी तरह से बंद पड़ा हुआ है.अधिकांश पावरलूम मालिकों ने मजदूरों को इस उम्मीद में कई महीनों तक बैठा रखा कि सरकार जल्द ही पावरलूम उद्योग को शुुरू करने के लिए आदेश जारी करेगी. किन्तु ऐसा सरकार ने नहीं किया.कोरोना वायरस से भयभीत होकर पावरलूम कारीगरी पैदल ही अपने मातृभूमि के लिए रवाना हो गये थे. सरकार का कोई भी वादा तथा लालच उन्हें रोक नहीं सका। तीन महिने के लंबे समय बाद पुनः पावरलूम कारखाने खुल रहे है वही पर पैदल गये मजदूर अब धीरे धीरे लौटने के लिए उत्सुक है। किन्तु रेलवे प्रणाली अपने पुराने तरीके से शुरू नही होने के कारण मजदूर  लौटने में विवश है। शहर में अधिकांश पावरलूम कारखाने किराये पर थे।

भाड़े पर कारखाना चला रहे पावरलूम मालिकों की हालात दयनीय अवस्था में है. इन्हे दोहरी मार झेलना पड़ रहा है.एक तरफ घरों का बिजली बिल बढ़ गयी है दूसरी तरफ किराये पर लिए कारखाना का किराया देना बाकी है.
           
आज सरकार को इनकी मदद करने के लिए आगे आना चाहिए। इन्हे दीर्घकालीन ब्याज मुक्त ऋण देना जाना चाहिए ताकि वे अपना खुद का व्यवसाय चला सकें और अपने पैरों पर खड़े हो सकें। सरकार को कम से कम छह महीने तक बिजली बिलों में सब्सिडी देनी जानी चाहिए ताकि कोरोना संकटकाल में व्यापार हुए नुकसान को भरा जा सकें।
         
केंद्र सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपये की राहत की घोषणा की है। MSME में पावरलूम उद्योग (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय) इस घरेलू उद्योग को भी शामिल किया जाना चाहिए। इस उद्योग को हथकरघा उद्योग की तरह सरकारी संरक्षण भी दिया जाना चाहिए। पावरलूम उद्योग ऑक्ट्रॉय और एक्साइज टैक्स के रूप में,  हर महीने सरकारों को करोड़ों रुपये का भुगतान करता था किन्तु आज उद्योग जब संकट में है, तो इसे चालू करने के लिए कोई नहीं है।

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