सत्यगाथा

धीरे - धीरे   फूटती , गठबंधन  की  ढोल

और चचा शिवपाल भी हुये छोड़के गोल 

हुये  छोड़के  गोल , इधर माया क़ा हाथी 

नही  मगर  तैयार , बने  पंजे  क़ा  साथी 

कह बृजेश कविराय , देख इनकी तैयारी 

लगा उखड़ने विकट पलायन है जी जारी 

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