
जेरबाई वाडीया अस्पताल ने बचाई जन्मजात एन्सेफेलोसील डिसऑर्डर दुर्लभ बीमारी के साथ जन्मे ४ महिने के बच्चे की जान
- अरविंद मिश्रा 'पिंटू'
- Aug 06, 2021
- 439 views
८ घंटे चला आँपरेशन, नंदुरबार स्थित किसान दंपत्ति को मिली नयी खुशी..
मुंबई - परेल के बाई जेरबाई वाडिया अस्पताल फाँर चिल्ड्रेन के डॉक्टरों ने नंदुरबार में एक किसान के ४ महिने के बच्चे की जान बचाने में कामयाबी हासिल की है, जो एन्सेफेलोसील डिसऑर्डर नामक एक दुर्लभ बीमारी के साथ जन्म दिया था। लड़के की ब्रेन सर्जरी करीब आठ घंटे तक चली। सर्जरी ने इस बच्चे को नया जीवन दिया है।
महाराष्ट्र के नंदुरबार जिले के धनाजी पुत्रो गांव के रहने वाले सुरेश कुटा पवारा के दो बच्चे हैं। उसके बाद तीसरी बार पत्नी के बच्चो को जन्म दिया। इसलिए परिवार में खुशी का माहौल था। हालांकि यह खुशी ज्यादा दिन नहीं टिकी। कुछ दिनों बाद बच्चे का चेहरा फूलने लगा, बच्चे को दूध पीने और सांस लेने में तकलीफ होने लगी। बच्चे को इलाज के लिए स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया। आमतौर पर यहां एक महीने तक बच्चे का इलाज शुरू था। लेकिन हालत में सुधार नही हो रहा था। इसे देखकर डॉक्टरों ने उन्हें वाडिया अस्पताल में बाल रोग न्यूरोसर्जन के पास ले जाने की सलाह दी। महज छह दिनों में परिजन बच्चे को लेकर मुंबई पहुंच गए। यहां के वाडिया अस्पताल ने बच्चे की जान बचाने की काफी कोशिश की। डॉक्टरों के प्रयासों की बदौलत आज बच्चे को नई जिंदगी मिली है।
वाडीया अस्पताल के वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डॉ. चंद्रशेखर देवपुजारी ने कहा कि, "जब बच्चे को इलाज के लिए लाया गया था तब उसकी नाक और आंखें सूज गई थीं। वैद्यकीय जांच के बाद, बच्चे को एन्सेफेलोसेले नामक एक दुर्लभ बीमारी का पता चला। एन्सेफलोसेले एक जन्मजात विकृति है। जिसमें भ्रूण के विकास के दौरान खोपड़ी पूरी तरह से बंद नहीं होती है। १०००० नवजात शिशुओं में से केवल १ बच्चे को ही यह बीमारी होती है। भारत में फोलिक एसिड की कमी और आनुवंशिक कारणों से बच्चों को यह बिमारी होती है। यह लड़के का दिमाग थैली की तरह नीचे था। नाक में सूजन के कारण बच्चा सांस भी नहीं ले पा रहा था। उसकी नाक और चेहरा पूरी तरह से क्षत-विक्षत हो गया था। ऐसे में डॉक्टरों ने कोविड-१९ प्रोटोकॉल का पालन करते हुए बच्चे के ब्रेन का ऑपरेशन करने का फैसला किया।‘’
डॉ. देवपुजारी ने आगे कहा, "२२ जुलाई, २०२१ को बच्चे पर क्रैनियोटॉमी प्रक्रिया किया गई। इस प्रक्रिया में खोपड़ी को खोलकर मस्तिष्क के चेहरे के हिस्से को पीछे हटा दिया गया। सर्जरी करीब आठ घंटे तक चली। ऑपरेशन के बाद बच्चे को दो दिन तक आईसीयू में रखा गया था। इसके बाद उन्हें जनरल वार्ड में दाखिल किया। यदि इस बच्चे की बीमारी का जल्दी इलाज नहीं किया गया होता, तो मस्तिष्क द्रव के रिसाव और संक्रमण का खतरा होता। इसलिए, ऐसी स्थितियों का समय पर निदान और उपचार आवश्यक है। बच्चे की सेहत में सुधार होने के कारण २ अगस्त को उसे डिस्चार्ज दिया गया। भ्रूण में जन्मजात बीमारी के विकास के जोखिम को कम करने के लिए गर्भावस्था की योजना से एक महीने पहले और गर्भावस्था से दो महीने पहले फोलिक एसिड की गोलियां लेना जरूरी है।‘’
बच्चे के पिता सुरेश पवार ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहा, "लड़के का दर्द देखकर हम बहुत डर गए थे। लेकिन, वाडिया अस्पताल के डॉक्टरों ने हमें आश्वस्त किया। ब्रेन सर्जरी करने में कई जटिलताएं थीं। हालांकि, डॉक्टर ने चुनौती स्वीकार की और मेरे बेटे को जन्म दिया। इसके लिए मैं वाडिया अस्पताल के डॉक्टरों का शुक्रिया अदा करता हूं।"
वाडिया अस्पताल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. मिनी बोधनवाला ने कहा, "इस अस्पताल में हर दिन एक नए बच्चे का जन्म होता है। अस्पताल के न्यूरोसर्जरी, प्लास्टिक सर्जरी, एनेस्थिसियोलॉजिस्ट और नर्सों ने एक दुर्लभ बीमारी से पैदा हुए चार महीने के बच्चे को नया जीवन दिया है। मुझे डॉक्टर पर गर्व है।"
रिपोर्टर