मृत कैश वैन गार्ड के परिवार की अनदेखी, किंतु हत्यारे बदमाशों को मुठभेड़ में ढेर करने वाली बहादुर पुलिस टीम को पुरस्कार

अपर मुख्य सचिव गृह  ने एक लाख रुपये से किया पुरस्कृत


जौनपुर,उत्तर प्रदेश

            

 बक्शा ब्लाक के धनियामऊ बाजार में कैश वैन गार्ड से लूट करने आये बदमाशों ने कैश वैन गार्ड रामअवध चतुर्वेदी की गोली मारकर हत्या कर दी और इस घटना में शामिल दोनों बदमाशों को 12 घंटे के अंदर मुठभेड़ के दौरान ढेर किये जाने पर मुठभेड़ में सम्मिलित बहादुर जांबाज पुलिस टीम को अपर मुख्य सचिव गृह उप्र द्वारा एक लाख रुपये देकर पुरस्कृत किया गया किन्तु निर्दोष जान गवाने वाले गार्ड के परिवार को कोई भी सरकारी मदद नहीं। 

आखिर पुलिस अपनी जगह मुस्तैद होती तो गार्ड की जान ही न जाती। अगर पुलिस ने 12 घण्टे के अंदर बदमाशों का पता लगाकर उन्हें मार गिराया तो यह उनकी ड्यूटी थी जो सराहनीय है किन्तु गार्ड के परिवार को अनदेखा करना सरकार की नाकामी और लापरवाही का प्रमाण है। 

          कैश वैन गार्ड राम अवध चौबे की जिन दो बदमाशों द्वारा बेरहमी से हत्या की गई, उनको मारने के लिए जिले की जांबाज बहादुर पुलिस टीम को एक लाख रुपये से पुरस्कृत किया गया है जबकि वहीं दूसरी तरफ मृत गार्ड के परिजनों के साथ उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सौतेला व्यवहार किसी भी तरीके से सही नहीं ठहराया जा सकता ।


          सबसे बड़ा सवाल यह भी उठता हैं कि दोनों बदमाशों को ढेर करने के लिए बहादुर पुलिस टीम को पुरस्कार मिला और  दूसरी तरफ मृत गार्ड के परिजनों को  उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अभी तक कोई भी आर्थिक मदद क्यों नहीं मिला ? 

आखिर  मृत गार्ड के पीड़ित परिजनों को आर्थिक मदद कब मिलेगी ? सबका साथ, सबका विकास के मंत्र में यह दोहरा मानक क्या उचित है ? इस प्रकार तो सेवा देने वाले पुलिस की नाकामी से अपनी जान गवाएँगे और पुलिस फिर उन्ही बदमाशो को मारकर इनाम भी कमाएगी।


कायदे से होना तो यह चाहिए कि जिस थाना क्षेत्र में जिस सिपाही के हल्के में घटना घटी हो उसकी उस महीने की सैलरी काटी जाए, और मृत परिवार को आर्थिक सहायता दी जाए अन्यथा यह भी सम्भव है कि पुलिस गुपचुप में बदमाशों से घटना करवाएगी फिर उन्हीं बदमाशों को मारकर ईनाम भी कमाएगी । 

आखिर जो पुलिस किसी घटना के पहले बदमाशों को न पकड़ पाटी हो ,वही पुलिस घटना के बाद 12 घण्टे के अंदर इतना सक्रिय कैसे हो जाती है ? खैर यह रहस्य तो सरकार या ईश्वर जाने ,लेकिन आम आदमी की नियति में जान गवाना ही लिखा है। वह तो हर जगह रामभरोसे ही चल रहा है।

रिपोर्टर

संबंधित पोस्ट