हिंदू राष्ट्र बनेगा ,चुनावी मुद्दा ?

विनय सिंह की कलम से........

उत्तर प्रदेश चुनाव में एक स्थिति धीरे धीरे साफ होती नजर आ रही है ।21वी सदी का भारत जिसमे अब राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाया गया है केवल एक पार्टी बीजेपी द्वारा, और मजे की बात ये है कि विचारधारा का मूल उद्गम स्थल यूपी ही है ।अब जो राष्ट्रवाद देश मे लगभग हर प्रदेश में  बीजेपी का फ्रंटलाइन  पोलिटिकल स्ट्रेटजी है, वो यूपी में सफल होगा कि नही ये केवल समय ही बता पायेगा ,लेकिन फिलहाल का दृश्य यही है कि , मुस्लिम तुष्टीकरण राष्ट्रवाद के विपरीत धारा है ,और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के बिल्कुल ही विपरीत धारा है | यह एक कड़वा सच है कि बृहत्तर भारत से अलग हुए  जो भी बांग्लादेश ,अफगानिस्तान ,पाकिस्तान ये  बने  उनका धर्म इस्लाम के अलावा कुछ नही हो सका क्योंकि ये देश  धर्म के आधार पर ही बने  और अन्य धर्म केवल "टारगेट टू हिट" के अलावा कुछ भी नही बन पाए इन देशों में। इसी बात ने हिंदुवो को झंझोड़ रखा है सांस्कृतिक राष्ट्रवाद अब धीरे धीरे "हिंदू राष्ट्र "की सोच में बदलने लगा है ।जिस हिन्दू राष्ट्रवाद का नाम लेकर हिंदुओं तक को ये समझाया जाता था कि ये गलत है , आज उसका प्रचार राजनीतिक मंचो से हो रहा है,कारण जनता की चेतना को राजनीतिक शीर्ष पर बैठे चाणक्य समझ चुके  हैं। 

"हिन्दू राष्ट्र राजनीतिक चेतना में है "इसका ज्वलन्त उदाहरण है पत्रकारिता के शीर्ष पर पहुंचे कुछ लोग अब  केवल कुंठित यू ट्यूबर बन के रह गए हैं केवल इस चेतना के खिलाफ बोलने के कारण,और इस लहर के समर्थक टीआरपी के रिकॉर्ड बना रहे हैं।हिंदुत्व के खिलाफ एक शब्द भी,अपने प्रोडक्ट प्रोमोशन मे, बोलने वाली कंपनियों के ब्रांड की दुर्गति हो गई है,पूरी फिल्म इंडस्ट्री  की फैन फॉलोइंग ने बता दिया है कि "बृंदावन में रहना होगा तो राधे राधे कहना होगा"।आज  की तारीख में कोई ऐसी फिल्म बने जिसमे हिन्दू चेतना के खिलाफ कुछ भी हो तो, उसे दो दिन में घुटने टेकने ही होंगे, क्रिकेटरों के सोशल मीडिया एकाउंट से लेकर हर छोटे मोटे सेलिब्रिटी, चिरकुट सेलिब्रिटी तक के एकाउंट तक पर हिन्दू राष्ट्रवादियों की खास नजर है जो हमेशा बताते रहते है कि "भइया बड़ी कठिन है डगर पनघट की "उनका स्पष्ट संदेश है भाईचारा तो निभेगा किन्तु संस्कृति की कीमत पर  बिल्कुल नही , इसमें अभी लेखक और बुद्धिजीवी वर्ग तेजी से प्रवेश कर रहा है ,क्योंकि साहित्य भी समाज का ही दर्पण होता है, लहर उसी तरफ है,जैसे मुंशी प्रेमचन्द की कहानियों में अभिजात्य वर्ग की कमियों पर खुला हमला बोल दिया गया था और इसी बात से हिंदी साहित्य में मुंशी प्रेमचंद ने बड़ी जगह बनाई  क्योंकि तब समय की मांग वही थी  ,अब हिंदू चेतना के लेखक भी अपनी रचनाओं से  वो स्थान प्राप्त कर रहे हैं ,क्योंकि सबकी जड़ में वो चेतना और विचार वाली भूख ही कारण है ।

ये हिंदू चेतना फली फूली बढ़ी , इसमें काम सिर्फ बीजेपी ने ही नही किया है अन्य पार्टियों ने कोई कसर नही छोड़ी है, आजाद भारत मे, देश की राजधानी में, भारत के सबसे विशिष्ट स्थान में औरंगजेब मार्ग,तुगलक लेन ,लोदी रोड ये सब औरंगजेब तुगलक या लोदी ने नही बनाये थे ,इसे बनाने वाली चुनी गई सरकारें भारत की जनता को क्या बताना चाहती थीं???भारत के ऐतिहासिक गौरव श्री राममंदिर को कानूनी उलझनों में डालने वाली पार्टियां क्या कर रही थीं ? कारसेवकों को  जान देकर भी बाबरी विध्वंस के हद तक ले जाने वाली पार्टियां भी जाने अनजाने इस सोई चेतना को ललकार रहीं थी, जगा रही थी । जिस देश की माटी  ने आचार्य शंकर , बुद्ध ,महावीर का प्रेम संदेश पूरे विश्व मे बांटा  "वसुधैव कुटुम्बकम" का घोष किया वहाँ प्रेम की इमारत ताजमहल को घोषित करने वाले ये भूल गए कि कम से कम प्रेम तो भारत को न सिखाओ  सूरदास,गोस्वामी तुलसीदास , रसखान, बिहारी, कालिदास, आचार्य वात्स्यायन, के इस देश मे मर्यादित प्रेम की रीति है, पशुप्रवृति वाली दस बारह पत्नियों की नही, संभोग से समाधि तक का ज्ञान देने वाले आचार्य ओशो भी ने भी बारह चौदह पत्नियों समर्थन नही किया था।

बाकी पार्टियों पार्टियों ने एक काम और किया  है , मोदी के कद को बड़ा करने  में कोई कसर नही छोड़ी  है।

हर अच्छे काम में भी फुल बकवास करके,सेना से लेकर वैक्सीन तक फुल बकलोली। राहुल जी ठीक चुनाव के समय हिदुत्व पढ़ा गये। ओमप्रकाश राजभर तो एक एक साल पांच मुख्यमंत्री का आइडिया दे गए राज्य है भइया केक नहीं ।

योगी जी इस नए हिन्दुत्व के प्रखर वक्ता हैं , और समय भी ऐसा  है कि जब ओवैसी ये बोल दे कि '""मोदी पहाड़ो में और योगी मठ में चले जायेंगे तब तुम्हे कौन बचाएगा?"" तो वो योगी जी को लोग नायक के रूप में देखेंगे ही,  भले ही छुट्टा सांड का मैनेजमेंट चुनावी  मुद्दा हो। मायावती जी "तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार वाले अब " सर्वजन हिताय" का नारा दे चुके मजबूरी में ,लेकिन अब देर हो चुकी है ।समाजवादियो के नेता मुलायम सिंह जी की अगली युवा पीढ़ी अखिलेश यादव जी ने विकास के मुद्दे को पहचाना और सोशल इंजीनियरिंग के मूलमंत्र को समझा भी और दोनों को उत्तर प्रदेश में सबसे पहले लागू करने की काफी हद तक कोशिश भी की, लेकिन पारिवारिक अंतर्विरोध  भारी पड़ा एक स्थापित सवर्ण नेता अमरसिंह को भी न संभाल पाए और न कोई कोई बड़ा सवर्ण नेता या बड़ा ओबीसी  या दलित नेता को साथ ले पाए ।हिन्दुविरोधी चेहरा आजमखान हावी रहे।सत्ता में सहभगिता सिर्फ चुनाव के समय नही होती इसे सहभगिता नही अवसरवाद कहते हैं। जातियों को सहभगिता देने में भी बीजेपी बढ़त बनाये हुए है चाहे ये जातिवादी नेता  कुछ काम  कर पाएं या नहीं पर  हिस्सेदारी ले रखी है बीजेपी में ।कुछ हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवानी, कन्हैया कुमार जैसे गुजरात चुनावों में मीडिया की सुर्खियां बटोरे थे ठीक वैसे ही  ओमप्रकाश राजभर और स्वामीप्रसाद मौर्य  आदि भी खिल उठे हैं लेकिन जैसी भाषा इनकी सवर्णों के प्रति है थोड़े बहुत जो उधर जाने भी वाले थे शायद खट्टा खा जांय।और सबसे बड़ी बात नेता जातियों के नाम पे मंत्रिमंडल मांगने वाले नहीं,  सहयोग की मजबूत नीति बनाने वाले भी चाहिए "गोस्वामी जी कहते है" राज न रहय नीति बिनु जाने । अघ न रहंय हरिचरित बखाने ।।मोदी जी अब अपने को ओबीसी का इशारा करने  लगे है इसे नीति ही कहेंगे । बड़ी रैलियों पे रोक भी क्या है ये बाद में पता चलेगा।और आखिर में प्रियंका जी के बोल "लड़की हूं लड़ सकती हूं " एक फुस्स गुब्बारा है , मैराथन आयोजित करने वाली लडकी  तो प्रियंका जी से अपने टिकट के लिए ही लड़ गई । सीजनल मंदिर विजिट कार्यक्रम की वाट मोदी जी पहले ही लगा चुके है काशी से शुरुआत करके । हर सवाल का जवाब भव्य विकसित हिन्दुराष्ट्र में ढूंढा जाएगा।

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