जन्म के समय पहचान और उचित प्रबंधन जन्मजात विकृति रोकने में कारगर - डॉ एके सिंह

पटना ।। जन्म लेने वाले नवजात बच्चों में छह प्रतिशत को जन्मजात विकृति होती है। इस छह प्रतिशत नवजातों में 10 प्रतिशत बच्चों की मृत्यु का एक कारण जन्मजात विकृति बनती है। वहीं देश में चार प्रतिशत शिशु मृत्युदर का कारण भी जन्मजात विकृति ही है। सही समय पर पहचान और उचित प्रबंधन से इसे रोका जा सकता है। यही राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम का मुख्य उद्येश्य भी है। उक्त बातें आरबीएसके के राष्टीय सलाहकार डॉ अरुण कुमार ने मंगलवार को एक नीजी होटल में प्रशिक्षण के दौरान कही।  यह दो दिवसीय राज्य स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम राज्य स्वास्थ्य समिति और केयर इंडिया के तरफ से 15 जिलों के 45 से अधिक शिशु रोग और स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञों  को दिया जा रहा था।  प्रशिक्षण के बाद यह चिकित्सक अपने जिले में जाकर चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षित करेंगे। 

एईएस से निपटने के लिए विभागीय तैयारी पूरी:

प्रशिक्षण कार्यक्रम का विधिवित उद्घाटन सोमवार को अपर कार्यपालक निदेशक केशवेंद्र कुमार ने किया था। वहीं कार्यक्रम की महत्ता पर आरबीएसके के राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ श्रीनिवास ने प्रमुखता से रखा। प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान एईएस की तैयारी और सर्विलांस पर आइडीएसपी के एसपीओ डॉ रंजीत ने विस्तार से चर्चा की और कहा कि एईएस में समय सबसे महत्वपूर्ण होता है। हर बार की तहत इस बार भी एईएस पर सर्विलांस की बेहतर तैयारी की गयी है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के स्तर पर ही एईएस मरीजों का सफल उपचार हो जाए,यही हमारा लक्ष्य है। 

समय पर जन्म बहुत महत्वपूर्ण: 

आरबीएसके के राष्ट्रीय सलाहकार और जोधपुर एम्स में नीयोनैटोलॉजी के एचओडी डॉ अरुण कुमार सिंह ने कहा कि किसी भी नवजात का समय पर जन्म बहुत जरुरी है। इससे उसमें जन्मजात विकृति की तो संभावना कम रहती ही है, उसका हर अंग अपना कार्य करने के लिए भी विकसीत हो जाता है। इसके अलावा बाहर की हरेक परिस्थिति भी माताओं के कोख में पल रहे बच्चों पर सीधा प्रभाव डालता है। डॉ सिंह ने प्रशिक्षण में आए चिकित्सकों को जन्म के समय स्क्रीनिंग के तरीको को भी बताया। वहीं राष्टीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम के विभिन्न उद्येश्यों पर भी विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि हम जन्म के समय नवजात के बाहरी आवरण को देखकर किसी भी विकृति को तुरंत ही पकड़ सकते हैं। ऐसे में उचित उपचार के बाद उसकी विकृति काफी हद तक ठीक भी हो सकती है। प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षक के रुप में आए डॉ अविनाश ने जन्मजात हृदय विकृति, स्क्रीनिंग और रिर्पोटिंग फॉर्म  , मूत्र रोग संबंधी तथा त्वचा संबंधी जन्मजात विकृति के बारे में जानकारी दी। इसके अलावा डॉ रोहित ने भी जन्मजात विकृति के कठिन परिस्थितियों में रेफर से पहले के पहलुओं पर प्रशिक्षित किया। धन्यवाद ज्ञापन आरबीएसके के राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ श्री निवास प्रसाद ने किया। प्रशिक्षण में राज्य स्वास्थ्य समिति की ओर से डॉ सरिता, डॉ रंजीत , डॉ वीपी रॉय, केयर के डॉ पंकज सहित अन्य लोगों की भी उपस्थिति रही।

रिपोर्टर

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