पहली बार गर्जी थी एके-47यूपी सरकार ने लिया केस वापस

प्रयागराज ।। समाजवादी पार्टी से झूंसी विधानसभा सीट से बाहुबली विधायक रहे जवाहर यादव उर्फ पंडित की सियासी अदावत कईयों से थी। 1996 में स्वतंत्रता दिवस से ठीक दो दिन पहले जब आमतौर पर देशभर में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी रहती है इलाहाबाद शहर एके—47 की गोलियों की गूंज से दहल गया। वारदात शहर के बीचो—बीच सिविल लाइंस में शाम करीब छह बजे हुई थी। जब तक लोग कुछ समझ पाते हमलावार अंधाधुंध फायरिंग करके फरार हो चुका था। दिल का खौफ और बारुद की धुआं थमने पर जब लोगों ने आगे बढ़कर देखा तो सड़क पर सपा के बाहुबली नेता जवाहर यादव का शव पड़ा था। शरीर खूल से लाल हो गया था।

 पहली बार था जब संगम नगरी में किसी अपराध में एके—47 का इस्तेमाल किया गया था। जवाहर पंडित समाजवादी पार्टी के मुखिया रहे मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी थे। वारदात के समय जवाहर यादव अपनी कार से रेलवे स्टेशन की ओर जा रहे थे। इसी दौरान कॉफी हाउस के नजदीक उन पर अंधाधुंध फायरिंग हुई। इस वारदात में जवाहर पंडित, एक राहगीर सहित तीन लोग मारे गए थे। कहा जाता है कि हत्या के लिए दूसरे राज्य से शूटर बुलाए गए थे।

नहीं मिल सकी जमानत हत्याकांड के पीछे बालू खनन के ठेके और सियासी वर्चस्व बड़ा कारण था। तब इस मामले में जिले के बड़े राजनीतिक कुनबे करवरिया परिवार के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया, जिसमें तेरह साल बाद करवरिया बंधुओं को जेल जाना।

सबसे पहले भाजपा विधायक रहे उदयभान करवरिया को 1 जनवरी 2014 को पुलिस ने गिरफ्तार किया। उनके बड़े भाई और फूलपुर से बसपा से सांसद रहे जबकि कपिलमुनि करवरिया और विधानपरिषद सदस्य सूरजभान करवरिया की गिरफ्तारी अप्रैल 2015 में हुई। करवारिया बंधुओं की जमानत याचिका कोर्ट से खारिज हो चुकी है।

दो बार जांच, सालों से अटका केस इस हाई प्रोफाइल घटना की दो बार जांच हुई। दोनों बार जांच सीबीसीआईडी से करवाई गई। इसके बावजूद इस केस का ट्रायल वर्षों से लटका है। बाद में हाईकोर्ट के दखल, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई। अब तक इस मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से 18 और बचाव पक्ष की ओर से 60 से ज्यादा गवाह पेश किए जा चुके हैं बगैर किसी निर्णय के यूपी सरकार अब केस को वापस लेने की तैयारी कर रही जबकी मामला न्यायलय मे विचाराधीन है कही बीजेपी अपराधियो को संरक्षण तो नही दे रही है ।

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