अन्नप्रासन के साथ प्रखंड में हुई पोषण पखवाड़ा की शुरुआत

•स्तनपान के साथ उपरी आहार है सुपोषित जीवन की कुंजी 

•सेविका ने बताए उपरी आहार का महत्त्व 

पटना।। कुपोषण पर लगाम लगाने के लिए सरकार द्वारा कई कदम उठाये जा रहे हैं तथा सभी को पोषित करने तथा पोषण का सन्देश घर घर पहुँचाने के लिए अपने स्तर से आंगनवाड़ी कार्यकर्ता प्रयासरत हैं. इसी क्रम में आज सोमवार को जिले के मनेर प्रखंड लोदीपुर गाँव स्थित आंगनवाड़ी केंद्र संख्या 60 में छः माह से ऊपर के बच्चों का अन्नप्रासन कर पोषण पखवाड़ा की शुरुआत की गयी. इस अवसर पर शिशु लोकेश कुमार, माता नेहा देवी को खीर खिलाकर इसकी शुरुआत की गयी तथा धात्री माताओं एवं परिवार के सदस्यों को पूरक पोषाहार के विषय में एवं साफ़- सफाई के बारे में जानकारी दी गयी.  

स्तनपान के साथ उपरी आहार है सुपोषित जीवन की कुंजी: 

केंद्र संख्या 60 की सेविका सुषमा कुमारी ने बताया कि बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए 6 माह तक का सिर्फ स्तनपान एवं इसके बाद स्तनपान के साथ पूरक पोषाहार बहुत जरुरी होता है. उन्होंने इस दौरान घर एवं माँ शिशु की साफ़ सफाई की जरुरत पर जोर दिया. उन्होंने बताया कि अनुपूरक आहार शिशु के आने वाले जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. 6 माह से 23 माह तक के बच्चों के लिए यह अति आवश्यक है. 6 से 8 माह के बच्चों को दिन भर में 2 से 3 बार एवं 9 से 11 माह के बच्चों को 3 से 4 बार पूरक आहार तथा 12 माह से 2 साल तक के बच्चों को घर में पकने वाला भोजन भी देना चाहिए. इस दौरान शरीर एवं दिमाग का विकास तेजी से होना शुरू होता है. जिसके लिए स्तनपान के साथ ऊपरी आहार बच्चों के सुपोषित जीवन की पृष्ठभूमि तय करता है.

ऐसे दें बच्चों को पूरक आहार: 6 माह से 8 माह के बच्चों के लिए नरम दाल, दलिया, दाल -चावल, दाल  में रोटी मसलकर अर्ध ठोस (चम्मच से गिराने पर सरके, बहे नही) , खूब मसले साग एवं फल  प्रतिदिन दो बार 2 से 3 भरे हुए चम्मच से देना चाहिए. ऐसे ही 9 माह से 11 माह तक के बच्चों को प्रतिदिन 3 से 4 बार एवं 12 माह से 2 वर्ष की अवधि में घर पर पका पूरा खाना एवं  धुले एवं कटे फल को प्रतिदिन भोजन एवं नास्ते में देना चाहिए.   

पूरक पोषाहार है जरुरी : समेकित बाल विकास योजना के अंतर्गत 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों के बेहतर पोषण के लिए पोषाहार वितरित किया जाता है. पूरक पोषाहार के विषय में सामुदायिक जागरूकता के आभाव में बच्चे कुपोषण का शिकार होते हैं. इससे बच्चे की शारीरिक विकास के साथ मानसिक विकास भी अवरुद्ध होता है एवं अति कुपोषित होने से शिशु मृत्यु दर में भी बढ़ोतरी होती है.

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