भारत की जनता के लिए भरोसेमंद नहीं है कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट का स्थग्नादेश: शम्भू शरण सिंह

जमुई ।। अनिश्चितकालीन धरना का  आज छठा दिन भी जारी रहा छठे दिन के शुरुआत 3 कृषि कानून की प्रतियां जलाकर विरोध प्रकट करते हुए किया इस धरने की अध्यक्षता सी.पी.एम. नेता शिव शंकर शाह ने किया धरने में उपस्थित किसान नेता शंभू शरण सिंह ने कहा कि कल जो सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर प्रतिक्रिया देत कहा है कि कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश भारत की जनता के लिए भरोसेमंद नहीं है। आगे उन्होंने कहा कि कानूनों को किसी भी अदालत द्वारा स्थगित करने या उन पर अस्थायी रोक लगाने के लिए जरूरी होता कि अदालत पाए कि वह कानून संविधान सम्मत नहीं हैं, और अपने आदेश में ऐसा पाने के लिए अपने कारण स्पष्ट करे। कृषि कानून संविधान सम्मत हैं या नहीं, इस बारे में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कुछ नहीं कहा, और इसलिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इन कानूनों के स्थगन का आदेश आन्दोलनकारी किसानों और भारत की जनता के लिए भरोसेमंद नहीं लगता है

वही आइसा प्रदेश उपाध्यक्ष बाबू साहब ने कहा  कि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में खुद ही इशारा किया है कि स्थगन आदेश का मूल उद्देश्य राजनीतिक है, कानूनी या संवैधानिक नहीं। जैसा कि आदेश में कहा गया है “हम शांतिपूर्ण विरोध को दबा नहीं सकते, लेकिन कृषि कानूनों के स्थगन पर दिया गया यह असाधारण आदेश, किसानों को अपने उद्देश्य में सफ़लता का बोध देगा, कम से कम अभी के लिए किसान संगठनों को प्रेरित करेगा कि वे अपने सदस्यों को रोजमर्रा के जीवन में वापस जाने के लिए मना सकें, जिससे उनके जीवन व स्वास्थ्य और अन्यों के जीवन व सम्पत्ति की रक्षा हो सके।”

मौके पर उपस्थित जयराम तुरी ने कहा कि इस आदेश के इन शब्दों से यह स्पष्ट है कि कानूनों पर रोक लगाने का उद्देश्य केवल कुछ ‘सफ़लता का बोध” देकर आंदोलनकारी किसानों को बिखेर देने का ही है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संवैधानिक तर्कों की बजाय ऐसे राजनीतिक तर्क के साथ आदेश देना असाधारण घटना है और इस पर सवाल उठने चाहिए।

किसान मजदूर नेता बासुदेब रॉय ने  कहा कि पैनल में जिन चार सदस्यों के नाम दिये गये हैं वे पहले से ही इन कानूनों के पक्ष में सार्वजनिक प्रचार कर चुके हैं। स्पष्ट है कि यह पैनल सरकार के पक्ष में इस हद तक खड़ा है कि इसके बारे में निष्पक्ष होने का दावा भी नहीं किया जा सकता। जाहिर है कि आन्दोलनकारी किसानों को यह पैनल स्वीकार नहीं है और उन्होंने इस पैनल की कार्यवाही में शामिल करने से इंकार कर दिया है।

उनका कहना है कि सर्वोच्च न्यायाधीश का महिलाओं को आन्दोलन से दूर रखने वाला बयान बेहद आपत्तिजनक है। महिलायें अपनी इच्छा से इस आन्दोलन में हैं और किसी को उन्हें यह कहने का अधिकार नहीं है कि कब और कैसे महिलाओं को आंदोलन करना चाहिए। सर्वोच्च न्यायाधीश का नागरिकों के अधिकारों और महिलाओं की स्वायत्तता के प्रति इतना कम सम्मान, गहरी चिन्ता का विषय है।

हम किसानों के आन्दोलन और उनके इस फैसले कि वे तीन कानूनों को सम्पूर्ण रूप से रद्द हो जाने तक अपने आन्दोलन को जारी रखेंगे,धरने में उपस्थित प्रबीन पाण्डे,सुभाष सिंह,मोहम्द हैदर, ब्रह्मदेव ठाकुर,सुबोध सह,रंजीत शाह,अनिल विश्कर्मा, दिनेश्वर शाह,मोहम्द मंसूर,मोहम्द मजीद,मोहम्द साजिद,सुरेश मांझी सहित दर्जनो किसन् उपस्थित थे

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