वेदों में है हनुमान जी- पंडित प्रमोद शास्त्री

दुबेपुर /दुर्गागंज ।। सनातन धर्म का मूल ग्रंथ ऋग्वेद है और वेद भी हनुमान जी की स्तुति करता है ।ऋग्वेद का पहला मंत्र है अग्निमीलेपुरोहितम------------मम्। यह मंत्र हनुमानजी की स्तुति है यहां अग्नि हनुमान जी हैं खल बन पावक, पुरोहित का अर्थ है संदेशवाहक जो ईश्वर के संदेश को यजमान तक सम्यक् रूप से पहुंचाता है हनुमान जी भी राम दूत हैं अर्थात पुरोहित हैं। होतारम् का अर्थ शत्रुओं को या आसुरी प्रवृत्तियों को ललकारने वाला होता है हनुमान जी भी यही करते हैं वे लंक जग्यकुंड में राक्षसों की आहूती देते हैं अत: इन्हें  होतारं कहा  और रत्न धातमम् का अर्थ रत्न धारण करने वाला हनुमान जी राम जी की मणिमुद्रिका मुखमे धारण करते हैं अतः रत्न धातमम् हैं।  उक्त बातें दुबेपुर गांव में चल रहे हनुमान चालीसा प्रवचनमें कर्मयोगी पंडित प्रमोद शास्त्री जी ने कहीं।श्रोताओं को उद्बोधित करते हुए आपने कहा कि मानव जीवन के चार पुरुषार्थ हैं धर्म अर्थ काम मोक्ष;  हर मानव को क्रमशः धर्म से अर्थ, अर्थ से काम की पूर्ति तथा इसके उपरांत मोक्ष की प्राप्तिकरनी चाहिए और हनुमान चालीसा के पाठ से यह चारों अनायास ही प्राप्त हो जाते हैं कथा के पूर्व मुख्य जजमान कौशल किशोर दुबे ने ग्रंथ पूजन एवं आरती की।

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