नियमित टीकाकरण नहीं कराने से बच्चों के बीमार होने का खतरा अधिक

- गर्भवती महिलाओं व बच्चों को बीमारियों से बचाने के लिए नियमित टीकाकरण है अनिवार्य 

- सप्ताह में दो दिन आंगनबाड़ी केंद्रों पर नियमित टीकाकरण सत्रों का संचालन किया जाता है

बक्सर ।। बच्चों की अच्छी सेहत के लिए जरूरी है कि गर्भावस्था के दौरान महिलाओ और शिशुओं का नियमित टीकाकरण हो। गर्भवती महिलाओं और प्रसव के बाद बच्चों के नियमित टीकाकरण से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो जाती है। जिसकी बदौलत वे जल्दी किसी भी प्रकार की बीमारी की चपेट में नहीं आते हैं। यदि बच्चा किसी बीमारी की चपेट में आ भी गया, तो वह उससे जल्द ही ठीक भी हो जाता है। बावजूद इसके जिन गर्भवती महिलाओं और बच्चों का नियमित टीकाकरण नहीं हो पाता तो उन बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता उतनी मजबूत नहीं होती और वो किसी भी बीमारी की चपेट में जल्द ही आ जाता है। इसके अलावा इससे उबरने में भी उसे काफी परेशानी होती है। इन्हीं सभी कारणों से बच्चों का नियमित टीकाकरण अनिवार्य रूप से करवाना चाहिए। शिशुओं को दिया जाने वाला टीका शिशुओं के शरीर में जानलेवा संबंधित बीमारियों से बचने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को विकसित और मजबूती प्रदान करते हैं। इस प्रकार कई तरह की  जानलेवा बीमारियों से शिशुओं को बचने के खास टीके विकसित किये गये हैं, जिनका टीकाकरण करवाना आवश्यक है।

बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास भी बेहतर होता है :

जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ. राज किशोर सिंह ने बताया, गर्भवती महिलाओं व बच्चों को गंभीर बीमारी से बचाव के लिए नियमित टीकाकरण बेहद जरूरी है। इससे न केवल गंभीर बीमारी से बचाव होता है, बल्कि सुरक्षित और सामान्य प्रसव को भी बढ़ावा मिलता है। साथ ही बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास भी बेहतर होता है। इसलिए गर्भवती महिलाओं व बच्चों को नियमित टीकाकृत करने के लिए सप्ताह में दो दिन आंगनबाड़ी केंद्रों पर नियमित टीकाकरण सत्रों का संचालन किया जाता है। साथ ही, सभी सरकारी अस्पतालों में भी नियमित टीकाकरण के टीके नि:शुल्क उपलब्ध हैं। जहां पर गर्भवती महिलाओं से आरंभ होकर शिशु के पांच साल तक होने तक नियमित रूप से दिये जाते हैं। ये टीके शिशुओं को कई प्रकार की जानलेवा बीमारियों से बचाते हैं।  

ये हैं जरूरी टीके:

जन्म होते ही – ओरल पोलियो, हेपेटाइटिस बी, बीसीजी

डेढ़ महीने बाद – ओरल पोलियो-1, पेंटावेलेंट-1, एफआईपीवी-1, पीसीवी-1, रोटा-1

ढाई महीने बाद – ओरल पोलियो-2, पेंटावेलेंट-2, रोटा-2

साढ़े तीन महीने बाद – ओरल पोलियो-3, पेंटावेलेंट-3, एफआईपीवी-2, रोटा-3, पीसीवी-2

नौ से 12 माह में – मीजल्स-रुबेला 1, जेई 1, पीसीवी-बूस्टर, विटामिन ए

16 से 24 माह में:

मीजल्स-रुबेला 2, जेई 2, बूस्टर डीपीटी, पोलियो बूस्टर, जेई 2

बच्चों के लिए ये भी हैं जरूरी :

5 से 6 साल में – डीपीटी बूस्टर 2

10 साल में – टेटनेस

15 साल में – टेटनेस

गर्भवती महिला को – टेटनेस 1 या टेटनेस बूस्टर ।

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