टीबी को जड़ से मिटाने में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है समय पर इलाज : सिविल सर्जन

सभी सीडीपीओ और एलएस को दी गई टीबी के नए रोगी की पहचान की जानकारी

- सेविकाएं व पर्यवेक्षिकाएं भी देंगी टीबी के लक्षण वाले मरीजों की सूचना

बक्सर ।।  जिले में प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान के अंतर्गत टीबी मुक्त पंचायत कार्यक्रम चलाया जा रहा है। जिसके तहत जिले के 22 चयनित पंचायतों को 31 दिसंबर तक टीबी मुक्त बनाया जाना है। जिसके लिए दो चक्र में एक्टिव केस फाइंडिंग अभियान का संचालन किया जायेगा। जिसमें पहले चक्र में 22 से 26 नवंबर और दूसरे चक्र में 18 से 23 दिसंबर तक चयनित पंचायतों में आशा कार्यक्रताएं घर घर जाकर टीबी के लक्षण वाले मरीजों की खोज करेंगी। इस कार्यक्रम को गति देने के लिए अब आंगनबाड़ी केंद्रों की भूमिका तय की जाएगी। इसके लिए गुरुवार को सिविल सर्जन डॉ. सुरेश चंद्र सिन्हा की अध्यक्षता में प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें जिले की सीडीपीओ और पर्यवेक्षिकाओं को शामिल किया गया। 

इस दौरान सिविल सर्जन डॉ. सिन्हा ने बताया कि पूरे जिले में टीबी मरीजों की खोज एवं उनका इलाज कर बक्सर को टीबी मुक्त करना है। इस कार्यक्रम को सफल बनाने को लेकर सभी लोगों का सहयोग चाहिए। इसके लिए चयनित पंचायतों के हर गांव के टोले, मोहल्ले में घर-घर जाकर अभियान चलाया जा रहा है। टीबी उन्मूलन को चुनौती के रूप में लेकर कार्यक्रम को सफल बनाने को लेकर आंगनबाड़ी केंद्रों को भी शामिल किया जा रहा है। आंगनबाड़ी केंद्रों की सेविकाओं, पर्यवेक्षिकाओं और सीडीपीओ को टीबी के लक्षणों की पहचान की जानकारी दी जाएगी। ताकि, आंगनबाड़ी केंद्रों पर आने वाली किशोरियों और लाभुक महिलाओं में टीबी के लक्षण पाए गए तो वो तत्काल संबंधित क्षेत्र के एसटीएस या एसटीएलएस को इसकी सूचना देंगी। जिसके बाद टीबी के लक्षण वाली किशोरियों व महिलाओं की जांच की जायेगी और पुष्टि होने पर उनकी इलाज किया जायेगा।

टीबी अब लाइलाज नहीं है :

जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ. शालिग्राम पांडेय ने बताया कि एक-एक घर जाकर टीबी के मरीजों की खोज करना है। टीबी को दूर भगाना है। टीबी अब लाइलाज नहीं है। टीबी की दवा मरीजों को नि:शुल्क दी जाएगी। उन्होंने बताया कि पहले लोगों को टीबी की सही जांच और उसके बेहतर इलाज की कोई जानकारी नहीं थी। लोग टीबी को एक गंभीर संक्रामक बीमारी के साथ ही छुआछूत की बीमारी समझते थे और टीबी मरीज को अपने परिवार से दूर किसी शांत और खुले स्थान पर रहने के लिए छोड़ दिया जाता था। लेकिन अब वो स्थिति नहीं है। हालांकि टीबी अभी भी एक गंभीर संक्रामक बीमारी है, लेकिन यह छुआछूत व लाइलाज बीमारी नहीं है। अब टीबी मरीजों की सही समय पर पहचान हो जाने के बाद उसके सही जांच और इलाज की निःशुल्क व्यवस्था सभी सरकारी अस्पतालों के साथ ही प्राइवेट अस्पतालों में उपलब्ध है। 

ये हैं बीमारी के लक्षण 

- दो सप्ताह से ज्यादा खांसी होना 

- शाम के समय बुखार होना

- खांसते समय बलगम में खून आना

- सीने में दर्द होना और सांस फूलना

- गर्दन या बगल में गांठ होना

- भूख और वजन कम होना

अज्ञानता या नासमझी के कारण नहीं करा पाते इलाज :

सीडीओ डॉ. पांडेय ने बताया कि इस अभियान का मुख्य उद्देश्य ही टीबी के लक्षणों के साथ जीने वाले उन संभावित मरीजों की पहचान और इलाज करना है, जो अपनी अज्ञानता या नासमझी के कारण अपना इलाज नहीं करा पाते। ऐसे लोग स्वयं के साथ अपने आसपास के लोगों में भी टीबी के संक्रमण का प्रसार करते हैं। जो की टीबी मुक्त भारत के लक्ष्य को हासिल करने में बड़ी बाधा बन सकते हैं। उन्होंने बताया कि आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चे समूह में बैठते और खेलते हैं, वहीं विशेष तिथियों को महिलाओं का भी जमावड़ा होता है। जिससे टीबी के संक्रमण प्रसार की संभावना प्रबल है। टीबी का एक मरीज अपने साथ नए 10 लोगों को टीबी से संक्रमित कर सकता है। इसलिए टीबी के मरीजों की खोज जरूरी है।

प्रशिक्षण में डब्ल्यूएचओ के एनटीईपी कंसल्टेंट डॉ. बिज्येंद्र कुमार सौरभ, डीपीसी कुमार गौरव, हेड क्लर्क मनीष कुमार श्रीवास्तव के साथ एसटीएलएस और एसटीएस मौजूद रहे।

रिपोर्टर

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