
रबी फसलों की कटाई के बाद हरी खाद का प्रयोग भूमि के लिए वरदान
- सुनील कुमार, जिला ब्यूरो चीफ रोहतास
- May 02, 2025
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रोहतास। गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय, जमुहार के अंतर्गत संचालित नारायण कृषि विज्ञान संस्थान के शस्य विज्ञान विभाग में कार्यरत सहायक प्राध्यापक सह प्रभारी फसल प्रक्षेत्र डॉ. धनंजय तिवारी ने बताया कि इस समय खेतों में रबी फसलें जैसे सरसों, चना, मटर, मसूर व गेहूं आदि की कटाई के बाद और खरीफ फसल की बोआई के बीच का समय हरी खाद जैसे ढैंचा, सनई , मूंग और उरद के लिए सर्वोत्तम होता है। इस दौरान खेत अमूमन खाली रहते हैं तथा किसान आसानी से इसकी खेती कर खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ा सकते हैं। हरी खाद जैसे ढैंचा, सनई , मूंग और उरद की फसल की खेती से मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि, जैविक, रासायनिक और भौतिक गुणों में सुधार होने के साथ मृदा की जल धारण क्षमता में भी बढ़ोत्तरी होती है जो किसानों के लिए एक वरदान है। ढैंचा एक हरी खाद वाली फसल है जो कि नाइट्रोजन का बेहतरीन स्रोत भी है क्यूंकि इसकी जड़ों में राइज़ोबियम नामक बैक्टीरिया की गांठ पाई जाती है जो वायुमंडल के नाइट्रोजन को अवशोषित करती है। इसके इस्तेमाल के बाद यूरिया की एक तिहाई जरूरत कम होने के साथ ही खरपतवार की भी संभावना कम होती है। ढैंचा की फसल को बोने के लिए लगभग 15-20 किलोग्राम बीज की प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है। सामान्य तौर पर किसान भाइयों को हरी खाद की फसल कि बुआई धान लगाने के दो माह पूर्व (अप्रैल से लेकर जून तक) छिटकवा विधि से करना चाहिए। ढैंचा की फसल में बुआई के समय 20 किलोग्राम यूरिया व 150 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट अथवा 50-52 किलोग्राम डाईअमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) प्रति एकड़ बुआई के समय प्रयोग करना चाहिए। ढैंचा की फसल की कुछ उन्नत प्रजातियां जैसे सी. एस. डी. 137, सी. एस. डी. 123, पन्त ढैंचा - 1, पंजाबी ढैंचा - 1, हिसार ढैंचा है। गर्मियों में बोई गई ढैंचा की फसल में बुआई के एक सप्ताह बाद तथा 8-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। इस प्रकार 5 से 7 सिंचाई में फसल तैयार हो जाती है। सिंचाई की संख्या वर्षा के ऊपर भी निर्भर करती है। हरी खाद के लिए ढैंचा बोने के 45-50 दिन बाद जब फसल नरम अवस्था में हो अथवा फूल निकलते समय रोटावेटर या डिस्क हैरो से जुताई करके फसल को खेत में अच्छी तरह मिला देना चाहिए। । जिसके बाद हल्की सिंचाई करने पर फसल के अवशेष गलकर मिट्टी में मिल जाते हैं और खेतों को प्राकृतिक नाइट्रोजन की आपूर्ति करते हैं। डॉ तिवारी ने यह भी बताया कि फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए किसान ज्यादा से ज्यादा रासायनिक खाद का प्रयोग कर रहे हैं। रासायनिक खादों के ज्यादा प्रयोग से भले तत्कालिक रूप से उत्पादन में थोड़ी बहुत वृद्धि होती है पर मृदा को भारी नुकसान होता है। इसके साथ ही ज्यादा रासायनिक खाद के प्रयोग से तैयार फसल मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए भी प्रतिकूल होता है। इन सब परिस्थिति को देखते हुए हरी खाद की खेती से न सिर्फ रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होगी बल्कि मृदा के स्वास्थ्य में सुधार होने के साथ अगली फसल जैसे धान की खेती पर भी इसका अनुकूल प्रभाव होने से उत्पादकता भी बेहतर होगी।
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