एक जुलाई को मनाया गया डाँक्टर्स डे सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों पर 81 फीसदी डाँक्टर्स की कमी है हमारे देश मे

मुंबई।। 1 जुलाई को भारत डॉक्टर्स डे मनाया गया है। उन सभी डॉक्टर्स का शुक्रिया अदा किया जाता है, जो लोगों की जिंदगिया बचाते हैं। इस मौके पर देश की सेहत को समझना जरूरी है। भारत में हेल्थकेयर मार्केट के इस साल के आखिर तक 372 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।

इकानॉमी बड़ी, लेकिन खर्च काफी कम- लेकिन ऐसा नहीं कि तस्वीर सिर्फ सुहानी है। कुछ वक्त पुरानी रिपोर्ट बताती है कि अमेरिकी सरकार अपने हर नागरिक की सेहत पर 4 लाख रूपए खर्च करती है। यूके में हर नागरिक पर 2 लाख 60 हजार रूपए खर्च होते हैं लेकिन भारत में प्रति व्यक्ति खर्चा केवल 1418 रूपए। 2 लाख 60 हजार बनाम 1418 रूपए का बहुत बड़ा अंतर तब है जबकि यूके की इकानॉमी दुनिया में पांचवें नंबर है जबकि भारत की छटे नंबर पर। यानी इकानॉमी के साइज में भले ही ज्यादा अंतर ना हो सेहत पर होने वाले खर्च में जमीन आसमान का फासला है। बेशक आंकड़ों पुराने हो सकते हैं लेकिन डराने वाले हैं। 2019 के खर्च के आधार पर आए आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका सरकारी प्राईवेट सब मिलाकर सेहत के लिए 7 लाख रूपए प्रति नागरिक खर्च कर रहा है जबकि भारत में ये रकम केवल 5530 रूपए है। इस 5530 रूपए में सरकार की हिस्सेदारी देखें तो 2017-18 में ये रकम महज 1753 रूपए प्रति व्यक्ति थी। हालांकिं बीतते वक्त के साथ इसमें काफी इजाफा दिखा है। मसलन 2009-10 में हर नागरिक की सेहत पर सरकार 621 रूपए खर्च करती थी, जबकि 2013-14 में ये रकम 890 रूपए प्रति व्यक्ति थी। बेशक इकानॉमी से लेकर आबादी के मोर्चे पर अमेरिका से भारत की तुलना नहीं की जा सकती लेकिन फिर भी हालात बेहतर नहीं है ये तो साफ है। खासकर तब जबकि हमारे देश में 40 करोड़ लोग ऐसे हैं जो किसी हेल्थ इंश्योरेंस के दायरे में नहीं आते हैं। करीब 5 साल पुरानी एक रिपोर्ट बताती है कि 70 फीसदी किसान अपनी आमदनी से ज्यादा इलाज में खर्च करते हैं। आंकड़ें बताते हैं कि आबादी का बड़ा हिस्सा मंहगे इलाज के चलते गरीबी रेखा के नीचे जाता है।

खासकर गांव से लेकर शहर तक इलाज पर खर्च होने वाली रकम को कम करने के मोर्चे पर। नेशनल सैपल सर्वे की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक आज शहरों मे रहने वालो को प्राईवेट अस्पतालों में इलाज के लिए औसतन 32 हजार रूपए खर्च करने पड़ते हैं, जबकि गांव में रहने वालों की जेब से 26 हजार से ज्यादा रूपए खर्च होते हैं। आज गांव के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में 21,340 विशेषज्ञ डॉक्टरों की जरूरत है, लेकिन 3,881 विशेषज्ञ डॉक्टर ही मौजूद हैं! यानी 81 फीसदी विशेषज्ञ डॉक्टर्स की कमी है। मार्च 2020 के मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पश्चिम बंगाल के 94 फीसदी गांवों में स्पेशलाइज्ड डॉक्टर नहीं हैं। इंटरनेशनल मानक के मुताबिक 1000 की आबादी पर 1 डॉक्टर तैनात होना चाहिए।जबकि 1600 की आबादी पर सिर्फ 1 डॉक्टर मौजूद है।

रिपोर्टर

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