खेलों से जुड़ीं मानसिक और शारीरिक समस्याएं तथा उनकी होम्योपैथिक चिकित्सा-----डॉ एम डी सिंह

खेल जगत में बीते कुछ वषों से मानसिक स्वास्थय का मुद्दा गर्माया हुआ है और इसी कारण कई खिलाड़ी को खेल से ब्रेक लेते हुए देखा गया है, टोक्यो ओलिंपिक में भी सिमोना बाइल्स ने मानिसक स्वास्थय का मुद्दा उठाया था.किसी भी खिलाड़ी को ज्यादा स्ट्रेस लेने के कारण परफॉरमेंस एंग्जायटी हो सकती है। इस वजह से घबराहट, बेचैनी होने लगती है और यदि उसे बार-बार विफलता हासिल होती है तो उसके मन में अपने खेल के प्रति उदासीनता आने लगती है। ऐसी स्थिति में खिलाड़ी को स्ट्रेस, परफॉरमेंस एंग्जायटी और डिप्रेशन होना सामान्य बात है। डिप्रेशन की स्थिति तब बनती है जब वह काफी लम्बे समय से स्ट्रेस में होता है। इसका सीधा प्रभाव उसके परफॉरमेंस पर पड़ता है।
  कई बार खिलाड़ी अपने प्रदर्शन में वृद्धि करने के लिए मेटाबोलिक स्टेरॉयड लेता है। इस तरह के पदार्थ लेने से खिलाड़ी आश्रित स्थिति में आ जाता है। इस तरह के पदार्थ से प्रारंभ में तो वह अच्छा प्रदर्शन कर देता है लेकिन आगे चल कर वह इसका आदि होने लगता है। कुछ समय बाद इसका उसके मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव भी आने लगता है; जैसेः शरीर में कंपन, बेचैनी, घबराहट होने लगती है और उसके किडनी, लिवर आदि पर दुष्प्रभाव आने लगता है। ऐसे में यदि वह इनका सेवन छोड़ना भी चाहता है तो उसे इन सभी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उस पर पकड़े जाने का दबाव उसे मानसिक रूप से बहुत कमजोर कर देता है। ऐसे में उसका प्रदर्शन खराब होना लाजिमी है। बहुत समय तक किसी भी खिलाड़ी को इस स्थिति में छोड़ना ठीक नहीं। उन्हें डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।  हालाँकि एलॉपथी के चिकित्सक खिलाडियों को मेडिकल सुबिधायें देने के लिए आधिकारिक तौर पर तैनात किये जाते हैं   लेकिन अनेक बार एलोपैथिक दवाइयों से डोप टेस्ट की रिपोर्ट पॉजिटिव आ जाती है जिससे खिलाडियों का पूरा करियर चौपट हो जाता है और उन्हें जिंदगी भर बदनामी झेलनी पड़ती है /
मुझे लगता है की होमियोपैथी में खिलाडियों के  मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए अनेक पेटेंट दवाइयाँ उपलब्ध हैं जिनका कोई साइड इफ़ेक्ट भी नहीं होता 
।सच कहें तो होम्योपैथी के पास खेल से उत्पन्न होने वाली अलग-अलग शारीरिक, मानसिक दिक्कतों के लिए एकदम सटीक औषधियां हैं। जिनके प्रयोग से खिलाड़ी की क्षमता को बढ़ाया भी जा सकता है और अति प्रयास से होने वाले उपद्रवों को रोका और समाप्त भी किया जा सकता है, वह भी बहुत सहजता से।

विषय क्रम

A-खेल और खिलाड़ी को प्रभावित करने वाले मुख्य 

मानसिक कारण :

1-तनाव (स्ट्रेस )
2- व्यग्रता (एंग्जाइटी)
3-घर की याद सताना (होमसिकनेस)
4- चिड़चिड़ापन (इरिटेबिलिटी) 
5- स्वकेंद्रित होना (सेलफिशनेस)
6- भय एवं अपनी क्षमता से विश्वास घटना (फियर ऐंड लास ऑफ सेल्फ कॉन्फिडेंस)
7-अवसाद (डिप्रेशन)

B-खेल से उत्पन्न होने वाले कुछ खास शारीरिक चोट (फिजिकल इंज्रीज)एवं उन्हें उत्पन्न करने वाले खेल :

1-सर पर चोट (हेड इंजरी)- मुक्केबाजी, कुश्ती, रग्बी, फुटबॉल, क्रिकेट, हॉकी, डाइविंग( गोताखोरी) साइकिलिंग इत्यादि।
2-कंधों का जाम हो जाना ,थ्रोअर्स शोल्डर (फ्रोजन शोल्डर)- जैवलिन थ्रो ( भाला प्रक्षेप ), हैमर थ्रो, शॉट पुट (गोला प्रक्षेप), वॉलीबॉल, क्रिकेट, बेसबॉल, बैडमिंटन, टेनिस एवं गोल्फ इत्यादि।
3- टेनिस एल्बो -लॉन टेनिस, टेबल टेनिस, बैडमिंटन, क्रिकेट, बेसबॉल, तलवारबाजी, स्नूकर इत्यादि।
4- गोल्फ एल्बो- गोल्फ, हाकी, क्रिकेट, बेसबॉल इत्यादि।
5- एथलेटिक हार्ट सिंड्रोम-दौड़-कूद, हाकी, क्रिकेट, फुटबॉल, रग्बी टेनिस, बैडमिंटन, बालीबाल, जिमनास्टिक, नौकायन, तैराकी इत्यादि।
7- लिफ्टर्स स्पाइन- वेटलिफ्टिंग, कुश्ती, जिमनास्टिक, मिक्स फ्लोर स्केटिंग इत्यादि।
8- राइडर्स नी- घुड़सवारी, साइकिलिंग, बाइकिंग, नौकायन इत्यादि।
9-बनियान ऑफ ग्रेट टो- जिमनास्टिक, फ्लोर डांसिंग,
10- ई साइकिलिंग सिंड्रोम

C-खेलों में सामान्य रूप से लगने वाले चोट 
1- आंख नाक कान पर लगी चोट 
2- गर्दन और रीढ़ की हड्डियों पर लगे चोट
3- छाती और पीठ पर लगे चोट
4- मांस पेशियों पर आए चोट( मस्कुलर इंजरी)
5- हड्डियों पर लगे चोट (ओस्टियोआर्थराइटिक इंजरी)
6- स्नायुविक चोट (न्यूराल्जिक इंजरी)
7- मांसपेशियों में खिंचाव (स्प्रेन) 
8- त्वचा संबंधी रोग (स्किन डिसऑर्डर)

मानसिक कारण-- अनेक मानसिक कारण हैं जो खिलाड़ी के खेल परफॉर्मेंस को दुष्प्रभावित करते हैं। जिससे अच्छा से अच्छा खिलाड़ी अपना संपूर्ण देने में असफल हो जाता है।

तनाव (स्ट्रेस)-- आज खेल मात्र खेल नहीं रह रह गए हैं, न केवल स्वस्थ रहने के उपक्रम ना ही सहज जीवनचर्या के हिस्से। खेल जब तक स्पर्धा तक सीमित थे खिलाड़ी निश्चिंत होकर पूरी तैयारी करता था जीतना लक्ष्य अवश्य होता था। किंतु हार भी खेल का ही हिस्सा मानकर खिलाड़ी अगली स्पर्धा के लिए तैयारी में जुट जाते थे। किंतु जबसे खेल धनार्जन के बहुत बड़े स्रोत बन गए हैं अब खिलाड़ी को प्रतिद्वंदी से ही नहीं अपने साथी स्पर्धी से भी निरंतर होड़ करना पड़ता है।
स्पर्धा के लिए खिलाड़ी चुनने हेतु बहुस्तरीय चुनाव प्रणाली जहां कठोर तैयारी के लिए बाध्य करती है वहीं अंतिम समय तक अनिश्चितता मानसिक तनाव का कारण बनती है।

खेल जबसे व्यावसायिकता और आजीविका से जोड़े गए हैं उनके मूल भावना में भी आमूलचूल परिवर्तन दिखाई पड़ रहा है। अब हार खेल का हिस्सा नहीं रहा अब वह खिलाड़ी की अयोग्यता का परिचायक माना जाने लगा है। और यही खेल में स्ट्रेस का मुख्य कारण है।

लक्षण- 
1- जैसे-जैसे प्रतियोगिता नजदीक आएगी खिलाड़ी शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर महसूस करेगा
2- उसमें अपने परफारमेंस के बारे में शंकालुता बढ़ने लगेगी ।
3- रात दिन अपने आगामी प्रतियोगिता की चर्चा अपने मित्रों और परिजनों से करते हुए अपनी संभावनाओं के बारे में राय मांगना अथवा अपने को सबसे अलग कर लेना।
4- असफल होने का डर सताना।
5- प्रतियोगिता से पहले वाली रात अनिद्रा और बेचैनी।
6- शिथिलता अथवा हर कार्य में जल्दी बाजी दिखाना।
7- अनावश्यक पसीना आना, बार बार पेशाब होना, रुलाई आना।
8- खेल के मैदान में जाने से पहले अत्यधिक उत्तेजित अथवा अत्यधिक शिक्षक दिखाई पड़ता है।
9- खेलने जाने से पूर्व अपने कोच और मनोचिकित्सक की सहानुभूति चाहता है अथवा सहानुभूति पसंद नहीं करता ।
10- खेलने निकलने से ठीक पहले नर्वस डायरिया अथवा यूरिनेशन।
11- खेलते समय टीम गेम भावना का अभाव। एकल प्रयास करता दिखाई पड़े।

होमियोपैथिक औषधियां :

1-अर्जेंटम नाइट्रिकम- हमेशा जल्दी बाजी में रहता है, उसे समय तेजी से बीतता हुआ महसूस होता है। खेल मैदान में उतरने से पहले कई बार लैट्रिन -पेशाब जाने की आवश्यकता महसूस होती है ( नर्वस डायरिया)।
सबसे पहले फिल्ड में पहुंचने का प्रयास करता है। ह्विसिल बजने के पहले ही स्टार्ट होकर वह कई बार फाउल करता है। फाउल के भय से उसके परफारमेंस में कमी आती है जिसके कारण वह खेल के पहले ही स्ट्रेस में रहता है।

2-एसिड फॉस- उदासीनता, आशाहीनता, होमसिकनेस और रोहांसापन इस औषधि के मुख्य मानसिक लक्षण हैं जो खिलाड़ी को लक्ष्य से विरत करते हैं। बार-बार पेशाब होना और शारीरिक और मानसिक रूप से थका हुआ महसूस करना। ऐसे खिलाड़ी खेल प्रारंभ होने के पहले लंबी- लंबी सांसे खींचते हैं, अथवा उन्हें ऐसा करने का सलाह देना चाहिए जिससे उन्हें शारीरिक और मानसिक ऊर्जा मिलने का आभास होता है।

3-जेल्सीमियम- मंचभीरुता जेल्सीमियम का मुख्य मानसिक लक्षण है। खिलाड़ी तनाव में अथवा भयभीत रहता है कि वह दर्शकों के सामने सही तरह से खेल पाएगा या नहीं ? यही भय उसे एकांत में चुपचाप बैठने को मजबूर करता है । मैदान में उतरने से पहले वह चाहता है कि उसे कुछ समय के लिए अकेला छोड़ दिया जाय जिससे उसके अंदर शिथिलता और निद्रालुता का संचार होता है। खेल को लेकर उत्तेजना और भय के कारण वह फिजिकली भी डल हो जाता है और अपने हाथ- पैर को कांपता हुआ महसूस करता है जो उसके परफॉर्मेंस के लिए ठीक नहीं।

4-इग्नेशिया- कंट्राडिक्शन ऑफ माइंड इस दवा का मुख्य लक्षण है। यही कारण है की प्रतियोगिता में चुन लिए जाने की अवस्था में खिलाड़ी खुश होने की जगह तनाव में आ जाता है। तेजतर्राक, पूरी तरह तैयार और प्रथम श्रेणी के खिलाड़ियों को अचानक लगने लगता है कि कहीं वे हार न जाएं या उनका परफारमेंस कमजोर ना हो जाए। ऐसा उनके अंदर प्रतियोगिता वाले दिन अथवा एक-दो दिन पहले अचानक ही उत्पन्न होता है, जो मूलतः प्रतियोगिता के तनाव के कारण ही होता है। वह अपने तनाव को दूसरे से शेयर नहीं करता। जीत की मनोभावना और हार का भय जब उच्च अवस्था में हों यह दवा अद्भुत काम करती है।

5-नेट्रम म्यूर- इस दवा का पेशेंट इमोशनल और आसानी से अवसाद ग्रस्त खो जाने वाला होता है। किसी ग्रुप गेम मैं चुने गए सारे प्रतिभागियों में होने के बावजूद भी तनाव में रहता है कि वह मुख स्क्वायड में होगा कि नहीं। अपने तनाव को वह किसी पर जाहिर नहीं करता और सहानुभूति एकदम बर्दाश्त नहीं करता।
दूसरे पर विश्वास नहीं करता इस कारण संयुक्त खेलों में भी अकेला परफारमेंस देने का प्रयास करता है जो ग्रुप गेम के लिए घातक है।

नोट 
उपरोक्त औषधियों में से किसी एक को किसी होमियोपैथिक चिकित्सक द्वारा पार्टिकुलर खिलाड़ी के लिए चुनकर प्रतियोगिता से पहले 200 पोटेंसी में दो-तीन दिन तक रोज एक खुराक दिया जाए तो उसे तनाव से मुक्ति मिल जाएगी। इससे वह अपनी और अपनी टीम के लिए अच्छा खेल परफारमेंस दे पाएगा।

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