......लो फिर आ गया विधानसभा चुनाव नेताओं ने शुरू किया कांव कांव

■ चुनाव आते ही दिखने लगते है नेतागण 

मुंबई ।।  अप्रैल 2019 में संपन्न हुए सांसद चुनाव के पश्चात एक बार फिर से नेताओं ने राहत की सांस ली और वे अपने अपने घोसले में जा बैठे परंतु जैसे ही चार माह बाद विधानसभा चुनाव का समय सर पर आ धमका वैसे ही यह नेता एक बार फिर अपने घोसलों से बाहर आकर  कांव-कांव करते हुए सड़कों पर उतरने लगे इतना ही नही वे लोग छोटे से छोटे कार्यक्रम तक को नही छोड़ना चाहते है क्योंकि उन्हें यह डर लगा रहता है कि कही जनता उन्हें दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल कर ना फेक दे ।

 ★ छोटे से बड़े नेताओ का डोला सिंहासन

विदित हो कि जैसे ही सांसदी के चुनाव की घोषणा हुई वैसे ही छोटे से लेकर बड़े स्तर तक के नेताओं का सिंहासन डोल गया और वे अपने आराम देह घरों से बाहर निकल सड़कों पर दौड़ने लगे लोगों के बीच अपना पसीना बहाने लगे तरह-तरह के हथकंडे अपना लोगों का दिल जीतने का भरसक प्रयास किया परंतु जैसे ही चुनाव खत्म हुआ वैसे ही सारे के सारे नेता चकोर पक्षी की तरह गायब हो गए दूर-दूर तक उनका कहीं अता पता ही नहीं चला परंतु फिर जैसे ही विधानसभा चुनाव का बिगुल बजा वैसे ही यह नेतागण अपने-अपने घरों से निकलकर फिर सड़कों पर उतरे और लोगों के बीच पहुचकर फिर से कांव-कांव करना शुरू कर दिया आज हालात यह हो गए हैं कि यह नेता किसी भी तरह के छोटे-मोटे कार्यक्रम तक को नजरअंदाज नहीं करते हैं चाहे भाजपा हो, चाहे शिवसेना या फिर कांग्रेस अथवा राष्ट्रवादी कांग्रेस सभी अपने अपने स्तर पर अपने प्रचार प्रसार में रम गए हैं कहीं आशीर्वाद यात्रा निकाली जा रही है तो कहीं लोगों का साथ पाने के लिए कोई रैली निकाली जा रही है इस तरह से सभी अपने अपने स्तर पर कार्य करने में रम गए हैं यदि शिवसेना और भाजपा की युति के बारे में यह कहा जाए कि इनकी आपस में नहीं बनती तो यह असत्य भी नहीं होगा अपने डूबते हुए अस्तित्व को बचाने के लिए शिवसेना हर तरह के मूल मंत्र अपना रही है परंतु उसे सफलता नहीं मिल पा रही है वही लगातार दूसरी बार भी जीत हासिल करने के पश्चात भाजपा मदमस्त हाथी की तरह सभी को रौंदता हुआ आगे बढ़ता जा रहा है आज भाजपा अपने अनुसार शिवसेना से यूती करने पर बल दे रहा है तो वही शिवसेना अपनी मान सम्मान व प्रतिष्ठा को फिर से पाने के लिए हर तरह से प्रयासरत हैं जिससे शिवसेना और भाजपा में आपस में बिल्कुल ही नहीं बनती है वहीं कुछ लोगों का कहना है कि भाजपा की इसी तानाशाही के चलते इस बार भी भाजपा व शिवसेना की युति नहीं होगी और दोनों पार्टियां अलग अलग चुनाव लड़ेंगे क्योंकि आज भाजपा में टिकट लेने वालों की संख्या बहुत ही तेजी से बढ़ गई है ऐसे में यदि समझौता होता भी है तो वह किस फार्मूले पर होगा यह अनुमान लगाया जा पाना संभव नहीं हो पा रहा है ।

◆ कांग्रेस भी कर रही जोर आजमाइश 
       
तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस को देखा जाए तो उसकी नैया पूरी तरह डूब चुकी है आज उंगलियों पर गिने जा सके बस इतने ही नेता चुनकर आए हैं कांग्रेस की कमर इस कदर टूट चुकी है कि वह विपक्षी की भूमिका भी निभा पाने में सफल नहीं हो पा रही है इतने पर भी उसके कार्यकर्ता कई गुट में विभाजित हो गए है जिसके कारण कांग्रेस उभर भी नही पा रही है आपसी मतभेद व खींचातानी में ही कांग्रेस की लुटिया डूबती चली जा रही है आज हालत यह है कि उसके पास ऐसे मजबूत हाथ भी नहीं बचे हैं जो कांग्रेस को एक बार फिर से सम्मान की स्थिति में ला सकें इसी तरह के हालात राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के भी हो चुके हैं इनके पास भी कोई मजबूत नेतृत्व नहीं रह गया है जोकि एनसीपी की डूबती लुटिया को बचा सके अब जब चुनाव का बिगुल बज गया तो सभी ने अपनी-अपनी कमर कस ली है और एक दूसरे पर छींटाकशी करना प्रारंभ कर दिया है ऐसे में चाहे कोई छूटभैया नेता हो या कोई बड़े पदों पर विराजमान नेता हो सभी गुलाटिया खाना शुरू कर दिए और एक बार फिर लोगों के बीच पहुंच उन्हें तरह-तरह के लुभावने प्रलोभन देने शुरू कर दिए वही भाजपा के बारे में तो यह कहा जा रहा है कि इनके उम्मीदवार खुद के बल पर नही अपितु पीएम मोदी के नाम पर चुनाव जीत कर आते है चाहे मुंबई की बात करे या फिर कल्याण डोम्बिवली की बात करे सभी जगह राजनीतिक सरगर्मी शुरू हो गयी इन चुनावों में खास बात तो यह रहती है कि उत्तरभारतीय मतदाताओ को रिझाने के लिए भी तरह तरह के हथकंडे अपनाए जाते है ।

 ● शिवसेना भी मान सम्मान बचाने में जुटी 

राजनीति के जानकारों का कहना है कि यदि इस बार शिवसेना व भाजपा युति कर चुनाव लड़ते है तो चुनावी परिणाम एक तरफा हो जाएगा क्योकि कांग्रेस व एन सी पी तो पूरी तरह से लोगो के दिलो से उतर चुकी है और समाजवादी पार्टी का तो यहां पर अस्तित्व ही नही बचा है रही बसपा की बात तो वह किसी तरह खुद को बचाने की प्रयास में ही लगी रहती है इसके विपरीत यदि सेना व भाजपा की युति नही होती है तो यह चुनाव बड़ा ही रोमांचक हो जाएगा और भाजपा के लिए कल्याण की सीट निकालनी भी मुश्किल हो सकती है इसी क्रम में डूबते नाव पर सवारी करने वाले कुछ कांग्रेसी नेता भी विधायकी की टिकट के लिए प्रयास में जुट गए है हालांकि चुनाव परिणाम जो होगा वह तो पता ही चल जाएगा पर शिवसेना व भाजपा के गठबंधन पर ही चुनाव की गहमा गहमी टिकी हुई है ।

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