
स्वधर्म ही नित्य यज्ञ-स्वामी नरेंद्रानन्द सरस्वती
- महेंद्र कुमार (गुडडू), ब्यूरो चीफ भिवंडी
- Dec 07, 2021
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भिवंडी।। सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार हेतु सन्त मंडली के साथ महाराष्ट्र के प्रवास पर पहुँचे श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषित परम पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने भिवंडी में आयोजित धर्म सभा में उपस्थित सनातन धर्मावलम्बियों को अपना आशीर्वचन एवम् मार्गदर्शन प्रदान करते हुए कहा कि यदि कोई निष्कर्मता का साधन करना चाहे तो वह इस संसार में सम्भव ही नहीं है।इस बात का विचार व्यक्ति को स्वयम् करना चाहिए कि निषिद्ध कर्म करें या विहित कर्म। जो कर्म उचित हों और सामने आ पड़ें। वे सब निष्काम मन से करने चाहिए। व्यक्ति को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जो व्यक्ति शास्त्रों की आज्ञा के अनुसार और स्वधर्म के अनुरूप सब कर्म करता है,निश्चयपूर्वक वह उन्हीं कर्मों की सहायता से मोक्ष भी प्राप्त करता है। स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती समाजसेवी यशवंत सोरे द्वारा आयोजित सनातन धर्म जागरूकता कार्यक्रम में भक्तों को धर्म,संस्कृति का रसपान करा रहे थे।
गौरतलब हो कि परमपूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य जी भगवान ने कहा कि अपना जो स्वधर्म है, उसी का नाम “नित्य यज्ञ" है, और उसका पालन करने में पाप का लेश मात्र भी नहीं होता है।जब यह स्वधर्म छूट जाता है और मन में किसी ऐसे-वैसे परधर्म के प्रति प्रवृत्ति या रुचि उत्पन्न होती है। तभी मनुष्य संसार अर्थात् जन्म-मरण के बन्धन में पड़ता है। इसीलिए जो व्यक्ति सदा स्वधर्म के अनुसार आचरण करता है, उसके द्वारा सदकर्मों के आचरण में ही निरन्तर यज्ञ कर्म होते रहते है। जो ऐसे सदकर्म करता है उसे संसार के झमेले बन्धन में कदापि नहीं डाल सकते। धर्मसभा के अन्त में कार्यक्रम के आयोजक श्री यशवन्त सोरे को आशिर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि भगवान इन्हें और शक्ति एवम् सामर्थ्य दें ताकि ये और उत्साह से सनातन धर्म की सेवा करते रहे। धर्म मंच पर आकर केन्द्रीय मंत्री कपिल पाटिल ने पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज का आशिर्वाद प्राप्त किया। धर्म मंच पर धर्म पीठ के स्वामी नारायणानन्द तीर्थ जी महाराज, स्वामी अरुणानन्द जी महाराज, श्री कमलेश शास्त्री जी, स्वामी अखण्डानन्द तीर्थ जी महाराज, स्वामी केदारानन्द तीर्थ जी महाराज, स्वामी बृजभूषणानन्द जी महाराज सहित अन्य परम विद्वान सन्त गण विराजमान थे।
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