भिवंडी पश्चिम का चुनावी रण: 'चकरी और मांझा' की तलाश में नेता

जनता के सपनों का सपना 

भिवंडी। भिवंडी पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में इन दिनों चुनावी तपिश चरम पर है। समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार रियाज आज़मी और AIMIM के प्रत्याशी वारिस पठान अपने-अपने चुनावी मुद्दों के साथ मैदान में है। पर क्या जनता इनके वादों पर यकीन करेगी, या ये भी महज "फुस्स पटाखे" साबित होंगे ?

समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी रियाज आज़मी ने एक भावनात्मक और सटीक नारा दिया है: "भिवंडी का सपना, हम सबका सपना!" उनकी मंशा है कि भिवंडी के हर बच्चे को अच्छी शिक्षा मिले और हर गली में साफ-सुथरी सड़कें हों। पिछले दो सालों में, रियाज आज़मी ने भिवंडी पश्चिम क्षेत्र के विभिन्न क्षेत्रों में एक दर्जन से ज्यादा कार्यालय खोले है। जहां उन्होंने स्थानीय निवासियों की समस्याओं पर ध्यान देते हुए शिक्षा, स्वास्थ्य और प्रशासनिक मदद का कार्य किया। उनके समर्थकों का कहना है कि ये कार्यालय महज चुनावी नौटंकी नहीं है, बल्कि रियाज आज़मी का जनता के प्रति सच्चा समर्पण दर्शाते है। परंतु, भिवंडी की जनता ये सोचने पर मजबूर है कि क्या ये मदद चुनावी गिमिक है या चुनाव के बाद भी जारी रहेगी ? उनकी तरफ से किया गया यह सेवा-वादा वोटों में तब्दील होगा या जनता इसे चुनावी "डिस्पोजेबल" मानकर भूल जाएगी ?

दूसरी ओर AIMIM के प्रत्याशी वारिस पठान भी किसी से कम नहीं। वह भिवंडी के मुसलमान वोटरों का समर्थन हासिल करने के लिए अपनी पार्टी का प्रतीक, यानी पतंग, उठाए हुए है। पर, स्थानीय लोगों के अनुसार, "भिवंडी में 'चकरी और मांझा' की कमी" के कारण पठान की पतंग की उड़ान खतरे में है। ये प्रतीकात्मक तौर पर दिखाता है कि पठान को भिवंडी के राजनीतिक आसमान में ऊंची उड़ान भरने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। वारिस पठान का दावा है कि AIMIM एक ऐसी पार्टी है, जो अल्पसंख्यकों की आवाज को मजबूत करेगी और उनके हकों के लिए लड़ेगी। पर सवाल ये है कि क्या भिवंडी के मुसलमान वोटर उन्हें समर्थन देंगे या फिर ये पतंग भी चुनावी रेस में कहीं पेड़ पर अटक जाएगी ?

भिवंडी के नागरिकों की अपेक्षाएं बहुत ही वास्तविक हैं। उन्हें चुनावी वादों से ज्यादा उन नेताओं की जरूरत है, जो इन वादों को पूरा करने की ताकत रखते हैं। भिवंडी में सड़कें, पानी की कमी, शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएं हमेशा से बड़ी समस्याएं रही हैं।

रियाज आज़मी का चुनावी प्रचार ‘विकास’ पर आधारित है और उनके समर्थकों का कहना है कि वह असल बदलाव ला सकते हैं। लेकिन कई लोग इसे सिर्फ चुनावी रणनीति मान रहे है। वहीं, वारिस पठान को लेकर भी लोगों की राय बंटी हुई है। कुछ लोग उनके कट्टरवादी बयानों से सहमत हैं तो कुछ का मानना है कि उन्हें स्थानीय मुद्दों की जानकारी कम है।

अब देखना ये है कि भिवंडी की जनता अपने सपनों की चाभी किसे सौंपती है। क्या समाजवादी पार्टी का "भिवंडी का सपना" हकीकत बनेगा, या फिर AIMIM की पतंग कामयाबी के नए आसमान छू पाएगी ? जनता के मन में बस एक सवाल है: "क्या यह चुनावी वादे सिर्फ दिखावा हैं या सच में कुछ बदलाव लाएंगे ?" चुनावी जंग का फैसला जनता के हाथ में है, लेकिन इस बार ऐसा लगता है कि भिवंडी की जनता ने तय कर लिया है कि उन्हें अब सिर्फ बातें नहीं, असली बदलाव चाहिए। सुत्रों की माने ऐ दोनों सेमीफाइनल मैच खेल रहे है लेकिन फाइनल का और कोई विजेता घोषित होगा।

रिपोर्टर

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